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उत्तराखंड : केदारनाथ त्रासदी के सात साल, अब भी ताजा हैं आपदा के जख्म

तबाही का वह भयावह मंजर आज भी जब जेहन में आता है तो लोग सिहर उठते हैं, लोगों को आज भी याद है जून 2013 में आई केदारनाथ की आपदा का वह दिन, जब कई हजार लोगों की जान चली गई थी. पढ़ें खबर विस्तार से...

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केदारनाथ त्रासदी के सात साल

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Published : Jun 16, 2020, 8:40 AM IST

Updated : Jun 16, 2020, 7:41 PM IST

देहरादून :केदारनाथ आपदा के सात साल बीत चुके हैं, लेकिन आपदा के जख्म आज भी हरे हैं. तबाही का वह मंजर आज भी लोगों की स्मृति में मौजूद है. केदारधाम में आए इस जलप्रलय के बाद अब पीएम मोदी की पहल से धाम का स्वरूप कुछ हद तक जरूर बदल गया है. हालांकि, कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार चारधाम यात्रा शुरू नहीं हो पाई है.

इस आपदा के बाद हुए परफार्मेंस ऑडिट में कैग ने भी प्रदेश की आपदा प्रबंधन व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए थे. कैग रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय और राज्य के स्तर पर हुई कार्यशालाओं में यह बात भी सामने निकल कर आई थी कि प्रदेश को सबसे अधिक जरूरत बेहद मजबूत संचार तंत्र की है.

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ऐसा तंत्र जो आपदा के समय काम कर सके. इसके साथ ही खतरे की पूर्व चेतावनी का तंत्र भी स्थापित करने की बात की गई थी. केदारनाथ की आपदा का एक बड़ा सबक संवेदनशील स्थानों को चिह्नित करना और वहां रहे लोगों को खतरे से दूर करना भी शामिल था.

कई खतरों की जद में प्रदेश
भूकंप के लिहाज से प्रदेश जोन चार और पांच में शामिल हैं. इसके अलावा प्रदेश भू स्खलन के हिसाब से भी अति संवेदनशील हैं. करीब 200 अति संवेदनशील जोन इसमें चिह्नित भी किए जा चुके हैं.

आज भी है खतरा
मौसम में बदलाव के कारण अब मॉनसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. इससे मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं. ग्लेशियरों के सुकड़ने के कारण अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है और इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है.

इस साल नहीं शुरू हो पाई चारधाम यात्रा
कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. जबकि, चारधामों के कपाट खुल चुके हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की अनुमति दे दी है.

इस आपदा में कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. सरकारी आंकड़ों के अनुसार-

  • 4400 लोग इस घटना में मारे गए थे.
  • 4200 से ज्यादा गांवों का पुरी तरह से संपर्क टूट गया था.
  • 11091 मवेशी मारे गए थे और 991 स्थानीय लोग मारे गए थे.
  • 1309 हेक्टर कृषि भूमि बाह गयी थी, 2141 भवनों का नामोनिशान मिट गया है.
  • 4700 हजार यात्री सिर्फ केदार मंदिर में फंसे थे.
  • सेना द्वारा 9000 लोगो को रेस्क्यू किया गया था.
  • जबकि 30 हजार लोगों को पुलिस ने सुरक्षित निकाला था.
  • अब तक कुल 644 लोगो के कंकाल मिल चुके है.

7 साल में बदला केदारनाथ
बाबा केदार के धाम में 16 जून को कुदरत ने जो तांडव किया, उसे देश और दुनिया के लोग शायद ही भूले हों, उस दिन चोराबारी ग्लेशियर और गांधी सागर झील से आए पानी और मलबे के सैलाब ने सिर्फ हजारों लोगों को जिन्दा दफन ही नहीं किया बल्कि करोड़ों रुपये की संपत्ति को भी तबाह कर दिया. उस दिन एक झटके में कुदरत ने हजारों बच्चों को अनाथ बना दिया और कितने बूढ़े मां-बाप से उनके बुढ़ापे की लाठी को छीन लिया. लोग कुदरत की उस मार को भूल कर आगे की ओर चल दिए हैं और सिर्फ लोग ही क्यों बाबा केदार की नगरी भी 1 बार फिर से वक्त के साथ कदम ताल करने लगी है. आज केदारनाथ पूरी तरह से बदल गया है, केदारनाथ जाने वाली सड़कें पूरी तरह से बदल गयी हैं, तो केदारनाथ में हाईटेक हेलीपैड हैं तो होटल धर्मशाला अत्याधुनिक तरीके से बन रही है. केदारनाथ मंदिर के चारोतरफा मोटी दीवार बना दी गयी है और तो और अगर भविष्य में कभी आपदा जैसे हालात बनते हैं तो उसके लिए रेस्क्यू टीमों की टुकड़ी भी हमेशा तैयार रहती है.

इन्हें हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
आपदा के बाद सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ था तो वो था उत्तराखंड का पर्यटन उद्योग पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट बताती है कि इस आपदा से 12,000 करोड़ के नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं इस आपदा से गढ़वाल में आज भी लोग इस आपदा का दंश झेल रहे हैं. केदारनाथ में अब तक लगभग वर्ल्ड बैंक और एडीबी यानी एसियन डेवल्पमेन्ट बैंक से 2300 करोड़ रूपए का काम हुआ है.

मंदिर समिति के लोग कहते हैं- विश्वास नहीं था कि अब इतनी आस्था जुड़ी रहेगी
2013 में हुई तबाही के बाद एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि शायद बाबा केदार की नगरी में दोबारा चहल पहल शुरू होने में कई दशक लग जायेंगे लेकिन, तबाही का मंजर दिखाने वाले बाबा ने ही लोगों को फिर से उठकर अपने पैरों पर खड़े होने की ऐसी प्रेरणा दी. सिर्फ दो साल में ही बाबा का धाम आबाद हो गया. यहां लोगों के मन में अपने घर बार और अपनों को खो देने का गम तो है, लेकिन सर उठाकर जीने का गजब का माद्दा भी है और शायद यही कारण है की पांच साल बाद केदार घाटी में आने वाले लोगों को ये विश्वास ही नहीं होता की यहां कुदरत ने विनाश की ऐसी होली खेली थी की उसे देखने वाले कई लोग आजतक सामान्य भी नहीं हो पाये.

पिछले साल तक रिकॉर्ड तोड़ती रही है भक्तों की भक्ति, इस साल कोरोना ने मारा
आज भी बाबा केदार के धाम में जमीन के नीचे हजारों लोग दफन है लेकिन आपने सुना होगा की वक्त हर जख्म भर देता है चलते रहने का नाम ही जिंदगी है और इसका जीता जगता उदाहरण बाबा केदार का धाम है. जहां इस बार कपाट अपने तय समय अनुसार खुलने के बाद से अब भले ही कोरोना वायरस की वजह से भक्तों की भीड़ ना आई हो लेकिन, लोगों का बाबा केदार के प्रति प्यार और भक्ति देखते ही बन रही है और शायद यही कारण है कि लगातार प्रशासन से लोग केदारनाथ जाने की मांग कर रहे हैं लेकिन अभी फिलहाल, सरकार ने धार्मिक यात्राओं पर अधिक संख्या में यात्रियों को भेजने पर रोक लगा रखी है.

आपदा की यादें हुई धुंधली
हम खुद इस बात के गवाह हैं कि कैसे केदार घाटी को कुदरत ने तबाह कर दिया था. लेकिन केदार घाटी में अब सब कुछ सामान्य होने लगा है. बाबा के धाम की रौनक तो लौट आई ही है बाबा के धाम को नया रंग रूप प्रदान करने की कोशिश जो 2013 के बाद से लगातार चल रही थी अब वह मूल स्वरूप ले चुकी है और यदि ये सब इसी गति से जारी रहा तो केदारनाथ एक ऐसा स्थान होगा. जहां दुनिया का हर आदमी आकर बाबा के आगे नतमस्तक होना चाहेगा.

Last Updated : Jun 16, 2020, 7:41 PM IST

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