नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने एक ऐसी डायग्नोस्टिक किट बनाई है, जिससे न सिर्फ पशुओं में होने वाली जानलेवा 'ब्लू टंग' नामक बीमारी का अब समय पूर्व पता लगाया जा सकेगा बल्कि पशुओं को इस घातक बीमारी से बचाया भी जा सकेगा.
दरअसल इस किट का आविष्कार आईसीएआर के ही अंग भारतीय पशु चिकित्सा शोध संस्थान इज्जतनगर (बरेली) के वैज्ञानिकों ने किया है.
गौरतलब है कि 'ब्लू टंग' एक वायरस से फैलने वाली जानलेवा बीमारी है, जिसका अब तक कोई उपचार नहीं था. यह बीमारी आम तौर पर भैंस, भेड़, ऊँट, सुअर और बकरी को अधिक प्रभावित करती है.
हालांकि भारत में वैज्ञानिकों ने ऐसे 23 वायरस का पता लगाया है, जो मवेशियों इस बीमारी को प्रभावित करते हैं.
इस डायग्नोस्टिक किट की विशेषता यह है कि पूरे विश्व में पहली बार भारत ने इसे बनाया है. यानी कि अब भारत से ये विदेशों तक भी पहुंचायी जा सकेगी.
ईटीवी भारत ने भारतीय पशु वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा से विशेष बातचीत की.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा से ईटीवी भारत ने की विशेष बातचीत... डॉ. महापात्रा ने बताया कि ALESA (एलिसा डायग्नोस्टिक किट) तकनीक पर आधारित यह डायग्नोस्टिक किट बेहद उपयोगी सिद्ध हुई है और आने वाले समय मे जहां आवश्यकता होगी, इसे उपलब्ध कराया जाएगा. उन्होंने कहा, 'इतना ही नहीं चूंकि यह तकनीक विकसित करने वाला भारत दुनिया में अकेला देश है, इसलिए हम इसे अन्य देशों को भी एक्सपोर्ट कर सकेंगे.'
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उन्होंने बताया कि विश्वभर में कुल 29 ऐसे वायरस हैं, जिनका पता लगाया गया है और अफ्रीकी देशों में भी भारी संख्या में मवेशी 'ब्लू टंग' नामक बीमारी से प्रभावित होकर मर जाते हैं. ऐसे में ये डायग्नोस्टिक किट एक वरदान की तरह साबित होगी.
महापात्रा के अनुसार किसानों और विशेष कर उनके लिए, जो पशुपालन से जुड़े हैं, पहले 'ब्लू टंग' जैसी जानलेवा बीमारी भारी नुकसान ले कर आती थी. वहीं अब इस डायग्नोस्टिक किट से वो न केवल वायरस के फैलने का पता लगा सकेंगे बल्कि समय से पहले इसको रोकने में भी मदद मिल सकती है.
एलिसा डायग्नोस्टिक किट के नाम से जानी जाने वाली यह तकनीक पूरे देश के लिए एक बड़ी उपल्बधि है, जिससे पशुओं की जान बच सकेगी.