नई दिल्ली :गुजरात सरकार द्वारा कारखानों में श्रमिकों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से छूट देने वाली अधिसूचना को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आर्थिक मंदी का बोझ अकेले उन श्रमिकों पर नहीं डाला जा सकता है, जो आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ हैं. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट फैक्ट्रियों में चल रही आर्थिक तंगी, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण होने वाली कठिनाइयों से अवगत है. हालांकि, इस आर्थिक मंदी का बोझ श्रमिकों पर नहीं डाल सकते हैं और महामारी ऐसा कारण नहीं बन सकता जो श्रमिकों को गरिमा प्रदान करने वाले वैधानिक प्रावधानों और उचित मजदूरी के अधिकार को खत्म कर सके.
सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि गुजरात सरकार द्वारा श्रमिकों के वैधानिक अधिकारों को दूर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि महामारी देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाला आंतरिक आपातकाल नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश गुजरात श्रम और रोजगार विभाग की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है. अधिसूचना में गुजरात के सभी कारखानों को फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी गई है, जिसमें प्रतिदिन कामकाज के घंटे, साप्ताहिक कामकाजी घंटे, आराम के लिए अंतराल, वयस्क श्रमिकों का प्रसार और यहां तक कि अधिनियम की धारा 59 के तहत तय की गई दर से ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान करने से भी छूट दी गई है.
याचिका में दलील दी गई कि 17 अप्रैल की जारी अधिसूचना विभिन्न मौलिक अधिकारों, वैधानिक अधिकारों और श्रम कानूनों के अनुसार अवैध, हिंसक और अस्वाभाविक रूप से अन्यायपूर्ण है.
अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से पंजीकृत व्यापार संघ गुजरात मजदूर सभा और अन्य द्वारा याचिका दायर की गई.