नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसले में एक सदी से अधिक पुराने मामले का पटाक्षेप करते हुए अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और साथ में व्यवस्था दी कि पवित्र नगरी में मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन दी जाए.
न्यायालय ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे.
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसला दिया और कहा कि हिन्दुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि संबंधित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. वह प्रतीकात्मक रूप से भूमि के मालिक हैं.
राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील इस मामले ने भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तार-तार कर दिया था.
फैसले में कहा गया कि फिर भी यह स्पष्ट है कि राम मंदिर बनाने गए कारसेवकों द्वारा 16वीं सदी के तीन गुंबद वाले ढांचे को ढहाना गलत था और उसका 'निवारण' होना चाहिए.
शीर्ष अदालत के फैसले का हिन्दू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया, वहीं मुस्लिम नेतृत्व ने इसमें खामियां बताते हुए कहा कि वे निर्णय को स्वीकार करेंगे. उन्होंने भी शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की.
इसके साथ ही राजनीतिक दलों ने कहा कि यह अब आगे बढ़ने का समय है.
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प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन किया
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से शांति, सद्भाव और एकता बनाए रखने की अपील करते हुए ट्वीट किया, 'रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, ये समय हम सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है.'
प्रधानमंत्री ने बाद में राष्ट्र के नाम संबोधन में विभिन्न समुदायों के बीच किसी भी प्रकार की सामाजिक कटुता मिटाने का आह्वान करते हुए कहा, 'कहीं भी, कभी भी, किसी के मन में, इन सारी बातों को लेकर यदि कोई कटुता रही हो तो उसे आज तिलांजलि देने का भी दिन है. नए भारत में भय, कटुता और नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं होना चाहिए.'
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1885 में कानूनी विवाद में तब्दील हो गया था
अयोध्या में संबंधित स्थल पर विवाद सदियों पुराना है जहां मुगल बादशाह बाबर ने या उसकी तरफ से तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी.
हिन्दुओं का मानना है कि मुस्लिम हमलावरों ने वहां स्थित राम मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बना दी थी.
यह मामला 1885 में तब कानूनी विवाद में तब्दील हो गया था जब एक महंत ने अदालत पहुंचकर मस्जिद के बाहर छत डालने की अनुमति मांगी. यह याचिका खारिज कर दी गई थी. दिसंबर 1949 में अज्ञात लोगों ने मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रख दी. कारसेवकों की बड़ी भीड़ ने छह दिसंबर 1992 को ढांचे का ध्वस्त कर दिया था.
ढांचे को ध्वस्त किए जाने से देश में हिन्दुओं-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे थे और उत्तर भारत तथा मुंबई में अधिक संख्या में दंगे हुए, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए. ढांचा ढहाए जाने और दंगों से गुस्साए मुस्लिम चरमपंथियों ने मुंबई में 12 मार्च 1993 को सिलसिलेवार बम विस्फोट किए जिनमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई.
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कोर्ट ने दिया आदेश- ट्रस्ट को दिया जमीन
न्यायालय ने कहा कि जो गलत हुआ, उसका निवारण किया जाए और पवित्र नगरी अयोध्या में मुसलमानों को मस्जिद के लिए पांच एकड़ का भूखंड आबंटित किया जाए. न्यायालय ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे.
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए.
फैसले में कहा गया कि यह धर्म और विश्वास से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसकी जगह मामले को तीन पक्षों-रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड के बीच भूमि के स्वामित्व से जुड़े वाद के रूप में देखा गया.
शीर्ष अदालत ने 40 दिन तक चली मैराथन सुनवाई के बाद आज सुनाए गए बहुप्रतीक्षित निर्णय में कहा, 'यह विवाद अचल संपत्ति के ऊपर है. अदालत स्वामित्व का निर्धारण धर्म या आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि साक्ष्यों के आधार पर करती है.'
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संविधान पीठ ने की विवादित ढांचे की सुनवाई
यह सुनवाई उच्चतम न्यायालय के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है.
न्यायमूर्ति गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे.