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कमलनाथ सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति परीक्षण का दिया आदेश - मध्य प्रदेश बहुमत परीक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश मामले पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने शुक्रवार को विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया है. शाम पांच बजे तक पूरी प्रक्रिया खत्म करनी होगी. बागी विधायकों को कर्नाटक पुलिस सुरक्षा प्रदान करेगी. अभी बागी विधायक बेंगलुरु में हैं. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोर्ट में याचिका दायर की थी.

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Published : Mar 19, 2020, 6:18 PM IST

Updated : Mar 19, 2020, 9:44 PM IST

नई दिल्ली : मध्य प्रदेश में राजनीतिक संकट जल्द ही खत्म होने के आसार हैं. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए शुक्रवार को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश विधानसभा में कल शाम पांच बजे तक बहुमत परीक्षण कराया जाए.

कोर्ट के आदेश का पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि फ्लोर टेस्ट में कमलनाथ सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाएगी और इसके बाद एक नई सरकार का गठन होगा.

उच्चतम न्यायालय का आदेश :

  • उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एन पी प्रजापति को निर्देश दिया कि शुक्रवार को सदन का विशेष सत्र बुलाकर शक्ति परीक्षण कराया जाये और यह प्रक्रिया शाम पांच बजे तक पूरी हो जानी चाहिए.
  • उच्चतम न्यायालय ने विधानसभा का सत्र शुक्रवार (20 मार्च) को बुलाने का आदेश दिया.
  • उच्चतम न्यायालय ने 20 मार्च को ही हाथ उठाकर सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया.
  • उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि विधानसभा का एकमात्र एजेंडा बहुमत साबित करने का होगा और किसी के लिए भी बाधा उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए.
  • उच्चतम न्यायालय ने विधानसभा की पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग करने के आदेश दिए.
  • उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा सचिव को आदेश दिया कि सुनिश्चित किया जाए कि कानून व्यवस्था खराब नहीं हो.
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कल शाम पांच बजे तक विधानसभा में शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए.
  • उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश और कर्नाटक के पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिया कि कांग्रेस के 16 बागी विधायक अगर विधानसभा में शक्ति परीक्षण में शामिल होना चाहते हैं तो उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई जाए.
    जानकारी देते भाजपा के वकील

इससे पहले आज सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एनपी प्रजापति को कांग्रेस के बागी विधायकों से वीडियो लिंक के माध्यम से बातचीत करनी चाहिए या फिर विधायकों को बंधक बनाये जाने की आशंका को दूर करने के लिये शीर्ष अदालत पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकती है, लेकिन अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत के इस सुझाव को अस्वीकार कर दिया.

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि वह ऐसा माहौल उपलब्ध करा सकते हैं जिसमें यह सुनिश्चित हो कि बागी विधायकों ने स्वेच्छा से इस संकल्प का इस्तेमाल किया है.

पीठ ने कहा, 'हम बेंगलुरु या किसी अन्य स्थान पर पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अध्यक्ष से संवाद स्थापित कर सकें. इसके बाद वह निर्णय ले सकते हैं.' पीठ ने अध्यक्ष से यह भी जानना चाहा कि क्या बागी विधायकों के इस्तीफों के बारे में कोई जांच की गयी और उन्होंने उन पर क्या निर्णय लिया.

अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जिस दिन न्यायालय अध्यक्ष को समयबद्ध तरीके से निर्देश देना शुरू कर देगा तो यह संवैधानिक दृष्टि से जटिल हो जायेगा.

राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से पेश वकील ने पीठ से कहा कि मध्य प्रदेश के मख्यमंत्री कमलनाथ सारे घटनाक्रम में एक ओर बैठे हैं और इस समय न्यायालय में अध्यक्ष राजनीतिक लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं.

पीठ ने सभी संबद्ध पक्षों से जानना चाहा कि इन इस्तीफों और विधायकों की अयोग्यता के मामले में अध्यक्ष के निर्णय का सदन में शक्ति परीक्षण पर क्या असर होगा.

Last Updated : Mar 19, 2020, 9:44 PM IST

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