नई दिल्ली : मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जमीयत उल उलेमा ए हिंद द्वारा दायर याचिका पर बुधवार को सुनवाई की और प्रेस कांउसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) को दो हफ्ते में अपना जवाब देने को कहा है. याचिका में जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दावा किया गया था कि मीडिया संस्थानों ने कोरोना महामारी से उपजी स्थिति को साम्प्रदायिक रंग दिया. याचिका में साथ ही मीडिया संस्थानों के खिलाफ कारवाई की मांग की गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय प्रेस परिषद को यह सुझाव देने के लिए कहा कि केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम, 1995 की धारा 19 और 20 के तहत मीडिया घरानों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है और अब तक उसने (पीसीआई) क्या कार्रवाई की है.
बता दें कि यह याचिका जमीयत ने तबलीगी जमात की घटना के मद्देनजर दायर की थी, जहां 13 मार्च को जमात के आयोजन के लिए दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में लगभग 3400 लोग जमा हुए थे. पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, इसके बावजूद लगभग एक हजार लोग दिल्ली के मरकज में रह गए थे.
गौरतलब है कि समारोह में शामिल होने वाले कई लोगों को कोरोना संक्रमित पाया गया था.
इस घटना को मीडिया द्वारा कथित रूप से साम्प्रदायिक रूप दिया गया तथा मुस्लिम समुदाय को कोसने और उसे वायरस के प्रसार के लिए दोषी ठहराया गया.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने अदालत को बताया कि यह एक गंभीर मामला है. इससे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है.
उन्होंने कहा कि मरकज से संबंधित झूठी खबरों को जिस तरह से पेश किया किया गया, उससे देश का घर्म निरपेक्ष ताना-बाना टूट सकता है.