नई दिल्ली : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा समाप्त हो गई. ट्रंप के आने से पहले इस यात्रा को लेकर कई सवाल उठाए गए थे. यह पूछा जा रहा था कि आखिर उनके स्वागत के लिए इतने अधिक पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं. और अब जबकि वे यहां से जा चुके हैं, ये सवाल फिर से उठाए जा रहे हैं.
पेश है इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता व पूर्व विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद के साथ बातचीत. ईटीवी भारत की ओर से वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने उनसे बातचीत की है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे को लेकर हर कोई गदगद है. मोदी सरकार इसे विदेश नीति की बड़ी उपलब्धि की तरह देख रही है. आप इसके प्रभाव का आकलन कैसे करते हैं ?
चीयरलीडर्स को बाहर से लाना, बड़ी राशि खर्च करना, तामझाम खड़ा करना...आप कह सकते हैं कि विदेशी मेहमान हैं. उनसे मित्रवत रिश्ता है. इसलिए ये सब किया गया. लेकिन अब आपको बैठकर सोचना होगा कि इससे हासिल क्या हुआ. आप चाहते क्या थे और मिला क्या. इस पर बहुत कुछ बोलने की जरूरत नहीं है. परिणाम खोखला ही रहा. मुझे लगता है कि यह सरकार खोखली लग रही चीजों के साथ काफी सहज है. ऐसा कुछ है, जो उच्च डेसिबल जैसा लगता है, लेकिन अंदर कुछ भी नहीं है. मैं इस बैठक का वर्णन इसी तरह से करूंगा. हां, ट्रंप के लिए अच्छा जरूर रहा.
क्या राष्ट्रपति ट्रम्प की यात्रा उनके यहां होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से जुड़ी थी ? क्योंकि कुछ लोग कह रहे हैं कि उन्हें अपने चुनावों की चिंता है ?
बेशक, क्योंकि चुनाव होने में अभी छह महीने का वक्त है. वह इसे लेकर चिंतित हैं. देखिए, कोई भी राष्ट्र व्यक्तियों के साथ नहीं जुड़ता है. राष्ट्र वहां के लोगों के साथ जुड़ जाता है. मुझे उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों के साथ हमारा उस तरह का जुड़ाव है. अतीत में अमेरिका के साथ हमारी कुछ समस्याएं थीं. हम दुनिया के बारे में उनके दृष्टिकोण और उनकी कुछ नीतियों से सहमत नहीं थे और यही कारण है कि दो महान लोकतांत्रिक देशों के बीच दूरी थी. लेकिन अगर हमारे अच्छे संबंध हैं. कोई भी शिकायत नहीं कर सकता है. हम इससे बहुत खुश हैं. लेकिन यह घनिष्ठ संबंध हमें क्या कहते हैं. यह एक बड़ा सवाल है. मैं ज्यादा नहीं देख रहा हूं.
क्या पीएम मोदी की मजबूत छवि हमें चीन, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल जैसे अन्य देशों के साथ वैश्विक स्तर पर संबंध बनाने में मददगार है ?
क्या ऐसा हो रहा है ? हमसे कौन बात करता है ? कौन कहता है कि हम यरूशलेम के साथ क्या करना है, यह तय करने से पहले हम भारत से बात करेंगे ? क्या वही अमेरिकी राष्ट्रपति हमसे पूछते हैं कि यरूशलेम के साथ क्या करना है ? क्या वह फोन पर हमसे पूछ रहे हैं कि जब चीनी तय करते हैं कि वे सड़क आदि का निर्माण करना चाहते हैं तो क्या करें ? क्या वह हमसे बात करते हैं जब वे कहते हैं पाकिस्तान एक दोस्त है ? कहां से लाभ हुआ और कहां निवेश किया गया. इसका वादा किया गया था. मुझे पूरा यकीन नहीं है कि हमने कुछ हासिल किया है. क्या चीनी सहज हैं. क्या जापानी सहज हैं कि हम चीनी के साथ क्या कर रहे हैं ? लोगों के लिए यह अच्छा है कि वे भारत का समर्थन करते रहें, लेकिन ऐसा चार या पांच साल में नहीं हुआ है. यह एक लंबी गाथा है और बहुत कुछ पहले हुआ है. राष्ट्रपति ट्रम्प और मोदी के बीच हमारे संबंध कितने अद्भुत हैं, इसके बारे में सीटी बजाने से पहले, हमें उन दिनों को नहीं भूलना चाहिए जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी जवाहरलाल नेहरू के साथ चले थे. आइए हम यह न भूलें कि जब जैकलीन कैनेडी को विशेष रूप से भारत भेजा गया था. इस देश में बहुत कुछ ऐसा हुआ है, जो मोदी को मालूम नहीं है.
क्या भारत की छवि पिछले कुछ वर्षों में काफी बदल गई है ?
देखिए, भारत का स्टैंड हमेशा ऐसा रहा है कि हम सबस गर्व कर सकें. यह न भूलें कि हम गुटनिरपेक्ष आंदोलन में सबसे आगे थे. तीन देशों यूगोस्लाविया, मिस्र और भारत ने पहल की थी. जब हम ब्रिक्स के प्रमुख सदस्य बन गए और सार्क क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे महत्वपूर्ण देश बन गए, तो हमारा स्थान ऊंचा था. आसियान और एशिया-प्रशांत में हमारे आंदोलन मोदी से पहले हुए थे. मोदी भी इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, इस बाबत हम उन्हें धन्यवाद देना चाहते हैं. लेकिन ये भी याद रखिए, जब ट्रंप यहां थे, तो दिल्ली में और अन्यत्र क्या हो रहा था... कहीं हम अपनी छवि खो ना दें. मुझे उम्मीद है कि ऐसा ना हो.