नागरिकता संशोधन अधिनियम और प्रस्तावित एनआरसी का विरोध करने वालों और कानून का समर्थन करने वालों के बीच झड़पों को लेकर दिल्ली की सड़कों पर हिंसा हो रही है. इसका आप किस तरह से आकलन करना चाहेंगे?
मुझे लगता है कि यह बहुत दुख की बात है. सरकार ने एक निर्णय लिया है, जिसे हम वकील मान रहे हैं, यह पूरी तरह से अपरिहार्य है. इसका कोई वैध उद्देश्य नहीं है. लेकिन अदालतों को उस मुद्दे पर फैसला करना है और मामला अदालत के समक्ष लंबित है. अगर अदालत ने इसे तत्काल लिया होता, तो शायद ऐसी स्थिति नहीं होती. सरकार पूरी तरह गैरजिम्मेदाराना तरीके से काम कर रही है. लोगों में काफी असहमति है. एक जिम्मेदार सरकार को बातचीत के लिए आगे आना चाहिए. लोगों की चिंताओं को समायोजित करने का प्रयास होना चाहिए. उन्हें देखना चाहिए कि क्या ये वैध हैं या नहीं. परन्तु यह सरकार सिर्फ सबकुछ बुलडोज़र कर रही है. उन्होंने संसद में किया, जहां उनके पास बहुमत है. वास्तव में इसकी वैधता के बारे में संदेह का बड़ा सबूत है. यह दुख की बात है कि सरकार आंख बंद कर बैठी हुई है.
नागरिकों के एक वर्ग की शिकायतें थीं कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक सड़क को अवरुद्ध कर दिया और आम जनता को असुविधा हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में हस्तक्षेप किया है. आपके विचार?
ये बात सही है कि सड़कों पर विरोध करने से लोगों को दिक्कतें होती हैं. लेकिन आप इसे भी तो सही नहीं कह सकते हैं कि विरोध करने वाले गलत हैं. उन्हें दबाया जाए. उन पर हिंसा की जाए. हथियार खींचकर, तबाही मचाकर और आग लगाकर व्यापक विनाश कर रहे हैं. संपत्तियों का नुकसान हो रहा है. ये सब पूरी तरह से अस्वीकार्य है.
सड़क जंक्शनों पर महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बैठने के लिए कुछ लोगों को असुविधा का मुद्दा था. लेकिन हमने पिछले कुछ दिनों में जो कुछ देखा है, वह उन लोगों की वजह से पूरा हो सकता है जो सरकार बनाने के लिए समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं. आप सरकार का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन हथियारों को खींचकर और तबाही मचाकर और आग के माध्यम से व्यापक विनाश का कारण बन सकते हैं और संपत्ति के विनाश के अन्य साधन पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं.
क्या आपको लगता है कि ये सब प्रायोजित है?
हो सकता है. सीएए के खिलाफ विरोध स्वतः स्फूर्त रहा है. इसका कोई नेता नहीं है. कोई राजनीतिक पार्टी वहां पर मौजूद नहीं है. मैंने तो इस स्तर का जमीनी विरोध नहीं देखा है. मैं इसे परिवार का विरोध मानता हूं. छात्र आते हैं और क्लास शुरू हो जाता हैं. मैंने दिल्ली के बाहर कई लोगों से बात की है. दिल्ली में जो भी कुछ हो रहा है, वे सब भी उनसे सहमत दिखे.
कांग्रेस ने सीएए का कड़ा विरोध किया है और कई विपक्षी सरकारों ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं. सही कानूनी स्थिति क्या है?
इसके दो आयाम हैं. एक कानूनी पहलू है और मैं चाहूंगा कि अदालतें इसे तय करें. दूसरी तरफ, किसी चीज़ की आवाज़ से आंदोलन को चोट पहुंच सकती है. सार्वजनिक रूप से इस पर चर्चा नहीं करना सबसे अच्छा है. लेकिन इस आंदोलन में एक तत्व है जो सविनय अवज्ञा का गांधीजी के सत्याग्रह और मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और खान अब्दुल गफ्फार खान की कार्यप्रणाली के साथ है. सविनय अवज्ञा पर बहुत साहित्य है, लेकिन यह मुख्य रूप से राज्य तंत्र के खिलाफ एक व्यक्ति से संबंधित है. लेकिन मैं साहित्य में नहीं आया हूं जो कि गठित सरकारों या चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नागरिक अवज्ञा पर बहुत स्पष्ट है. हमारे संघीय ढांचे की वजह से, मुझे लगता है कि यहां सविनय अवज्ञा का एक तत्व है, जो अच्छी तरह से वैध हो सकता है और निश्चित रूप से फैसलों पर एक महत्वपूर्ण नैतिक असर पड़ता है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इन फैसलों को देखेगा.