भुवनेश्वर : भगवान जगन्नाथ की भक्ति में गाए गए भजनों को सुनकर भक्तों का हृदय नाच उठता है. उनका मन मंत्रमुग्ध हो जाता है. भजनों को सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानों समय रुक गया हो. सारी पीड़ा नष्ट हो गई हो और मन किसी पंछी के पंख की भांति हल्का हो गया हो.
इन भजनों को सुनकर भक्त के मन में यह खयाल जरूर आता है कि इन्हें रचने वाले व्यक्ति के मन में भगवान के लिए कितना प्रेम होगा. भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन भक्तों की जब बात आती है तो सालबेग का नाम जरूर आता है.
सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की भक्ति में सैकड़ों भजन लिखे हैं. सालबेग अन्य सभी भक्तों से अलग थे. वह हिंदू नहीं मुस्लिम थे. उनका जीवन और भगवान जगन्नाथ के प्रति उनका पूर्ण समर्पण भगवान जगन्नाथ का अपने भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाता है. भगवान का अपने भक्तों के प्रति प्रेम उनकी जाति, पंथ और धर्म से प्रभावित नहीं होता है.
वह भगवान सिर्फ अपने भक्तों के लिए हैं. उनकी वेशभूषा, उनका शरीर, रूप, कपड़े, त्योहार और वह सबकुछ जो उनसे जुड़ा सब उनके भक्तों के लिए ही है. उनके लिए किए जाने वाले सभी कृत्य उनके भक्तों के मन को बहलाने के लिए होते हैं.
आज भी हर वर्ष रथ यात्रा के दौरान भगवान जन्नाथ का नंदीघोष रथ सालबेग स्मारक स्थल के पास रुकता है. कहा जाता है कि सालबेग ने अपने एक भजन के माध्यम से भगवान से कहा कि उनके चरणों में ही उसका सारा संसार है. वह भक्त भगवान के दर्शन करने का इच्छुक है पर 750 कोस का सफर तय करने में असमर्थ है. वह भगवान से कहता कि वह अपना रथ रोक लें.
भगवान ने भक्त सालबेग की पुकार सुनकर रथ को रोक दिया. सालबेग को दर्शन देने के बाद ही उनका रथ आगे बढ़ा.
सालबेग के पिता एक मुगल सूबेदार थे. उनकी माता ब्राह्मण के घर में जन्मी थीं. वह अपनी अंतिम सांस तक मुस्लिम ही रहे, लेकिन हिंदू धर्म से उनका खास लगाव था. एक बार वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. उनकी मां ने उन्हें भगवान जगन्नाथ को याद करके उनके सामने खुद को समर्पित करने की सलाह दी. उसके बाद वह ठीक हो गए और वह किसी चमत्कार से कम नहीं था.
सालबेग के इस अद्भुत अनुभव के बाद, उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से भगवान जगन्नाथ के चरण कमलों में समर्पित कर दिया. सालबेग के लिए भगवान जगन्नाथ पूरी दुनिया बन गए. उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान की भक्ति में भजन गाकर व्यतीत किया.
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