महात्मा गांधी के कई निवास स्थलों में से एक हैं, अहमदाबाद का साबरमती आश्रम. 1917 से लेकर 1930 तक ये आश्रम मोहनदास गांधी का घर तो था ही, साथ ही भारत की आजादी की लड़ाई में भी इसकी अहम भूमिका रही है.
आश्रम को दोबारा साबरमती नदी के तट पर बसाया गया
दरअसल, गांधी के मित्र और बैरिस्टर जीवनलाल देसाई ने एक खूबसूरत बंगला बापू को तोहफे में दिया था. इस बंगले को उस वक्त सत्याग्रह आश्रम कहा जाता था. लेकिन बापू को एक बड़े क्षेत्र की जरूरत थी क्योंकि वह खेती, पशु पालन और खादी का उत्पादन करना चाहते थे.
इसलिए करीब दो साल बाद इस आश्रम को साबरमती नदी के किनारे दोबारा से बनाया गया. जिसके बाद ये साबरमती आश्रम के नाम से जाना जाने लगा.
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ऋषि दधीचि के सबसे पुराने आश्रमों में से एक है यह स्थल
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये स्थल ऋषि दधीचि के प्राचीन आश्रम स्थलों में से एक है. ऋषि दधीचि, जिन्होंने अपनी अस्थियों को असुरों को हराने के लिए देवों को दान कर दिया था.
बापू का था ये विश्वास
गांधी का मानना था कि क्योंकि ये आश्रम जेल और श्मशान के बीच बसा हुआ है इसलिए इससे कोई सत्याग्रही इनकार नहीं कर सकता.
'हरिजन आश्रम' से भी जाना जाता था साबरमती
सबसे खास बात ये है कि इस आश्रम को 'हरिजन आश्रम' के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां एक स्कूल था, जो मजदूरी, खेती और साक्षरता पर केंद्रित था.
गांधी ने साबरमती आश्रम से दांडी मार्च का नेतृत्व किया
12 मार्च 1930 को बापू ने इस आश्रम से सबसे चर्चित दांडी मार्च का नेतृत्व किया, ये मार्च जिसने हजारों लोगों को एक साथ, एक सूत्र में बांध दिया था.
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30 जनवरी 1948 को गांधी ने दुनिया से अलविदा कहा
गौरतलब है, 12 मार्च 1930 को गांधी ने ये कसम खाई थी कि वह तब तक आश्रम नहीं लौटेंगे, जब तक कि भारत अपनी स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेता. लेकिन कौन जानता था कि गांधी के ये शब्द सच हो जाएंगे और वह दुनिया को इतने जल्दी अलविदा कह देंगे.
30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या कर दी गई और इसके बाद वह कभी भी अपने निवास वापस नहीं लौटे.
आज साबरमती आश्रम लोगों के बीच एक प्रेरणा बन गया है, जो उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है. इन सभी में सबसे खास बात ये है कि यह आश्रम गांधी के विचारों, उनकी बातों और गांधीवादी दर्शन के संदेश को लोगों तक पहुंचा रहा है.