श्रीनगर: भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को कहा कि कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने से जोड़कर अफवाह फैलाई जा रही है.
उन्होंने कहा कि कश्मीर के मुख्यधारा के राजनेता घाटी में सैनिकों की तैनाती और संविधान के अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने से जोड़कर अफवाह फैला रहे हैं.
चौहान का यह बयान उस समय आया है जब केंद्र द्वारा कश्मीर घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियानों को मजबूती प्रदान करने और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए घाटी में करीब 10000 केंद्रीय बलों भेजना का एलान किया है.
चौहान ने कहा, ' यह अफवाह हमारे मित्रों द्वारा फैलाई जा रही है. सैनिकों की तैनाती एक सामान्य प्रक्रिया है.'
अनुच्छेद 35ए राज्य विधानसभा को जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने और उन्हें विशेषाधिकार प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है.'
बता दें कि शिवराज चौहान जम्मू कश्मीर में पार्टी के सदस्यता अभियान की शुरूआत करने के लिए आए हैं.
चौहान ने आगे कहा कि सरकार ने यह भी कहा है कि हम विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हैं जब भी चुनाव आयोग इन्हें कराना चाहे और चुनाव कराने के लिए अतिरिक्त बलों की जरुरत होती है.
उन्होंने कहा, 'इसमें और कुछ नहीं है लेकिन उमर (अब्दुल्ला) और महबूबा (मुफ्ती) को कुछ मुद्दा चाहिए, इसलिए वे इसे उठा रहे हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र 35ए निरस्त करने की योजना बना रहा है, चौहान ने कहा कि मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है.
बता दें कि बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार ने आतंकवाद निरोधक अभियानों को मजबूती प्रदान करने और कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए जम्मू कश्मीर में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की 100 कंपनियां तैनात करने का आदेश दिया था.जबकि सीएपीएफ की एक कंपनी में करीब 100 कर्मी होते हैं.
केंद्र सरकार इस फैसले पर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि केंद्र को जम्मू कश्मीर में चीजों को सुलझाने की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने की जरुरत है.
महबूबा ने एक ट्वीट करते हुए कहा था कि 'घाटी में अतिरिक्त 10,000 सैनिकों को तैनात करने के केंद्र के फैसले ने लोगों में भय उत्पन्न कर दिया है. कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है. जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसे सैन्य तरीकों से हल नहीं किया जा सकता. भारत सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार और उसे दुरूस्त करने की जरूरत है.'