31 अक्टूबर 2019, को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी जब भारत का सेंसेक्स अपने जीवनकाल के सबके ऊंचे शिखर 40,390 अंकों पर जा पहुंचा. यह पल एक तरफ जहां निवेशकों के लिए यादगार बन गया, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यस्था का दूसरा पहलू भी है जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए व्याकुल है. हालाँकि मीडिया की मुख्यधारा ने इस बाज़ार के समागमन के जश्न में एक अहम पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया है. 30 अक्टूबर 2019 को, भारत के प्रमुख वित्तीय सेवा समूहों में से एक, जेएम फाइनेंशियल ने भारत के 13 राज्यों में किए गए अपने शोध के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की थी. यह पाया गया है कि देश में कृषि आय की वृद्धि कम खाद्य कीमतों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है और इससे आने वाले समय में किसानों की आय दोगुनी करने का काम कठिन हो जाएगा. इस रिपोर्ट के जारी होने से कुछ दिन पहले, यह पाया गया कि देश के तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएं (एफ़एमसीजी) का बाजार सितंबर की तिमाही के दौरान धीमा हो गया, ग्रामीण भारत में आयतन वृद्धि एक साल पहले 16 प्रतिशत से गिरकर 2 प्रतिशत तक आ गई. पिछले सात वर्षों में पहली बार, एफ़एमसीजी की ग्रामीण विकास की दर शहरी विकास से नीचे चली गई है.
जब इन दोनों ख़बरों को हम साथ में देखते हैं, तो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में गहरी नीतिगत अंतर्दृष्टि मिलती और हालात की गंभीरता साफ़ नज़र आने लगती है. पहला पहलू ग्रामीण आय के प्रति सावधान करता है और दूसरा पहलू पहले से ही बिगड़ती ग्रामीण मांग को सामने लाता है, जिसका ग्रामीण आय और ग्रामीण विकास के साथ सीधा संबंध है. इस तथ्य को देखते हुए, इस समय यह कहना बहुत ही प्रासंगिक हो जाता है, कि देश एक आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है और जब भी भूत में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा है, तो हमेशा ग्रामीण भारत था जो बचाव में आया, अधिक खर्च करके और पुनरुद्धार में मदद करता हुआ. वास्तव में पिछले दस वर्षों में, देश में ब्रांडेड दैनिक जरूरतों की बिक्री काफी हद तक ग्रामीण भारत की वजह से पनपी है, जिसमें 80 करोड़ से अधिक की आबादी है, और देश में एफएमसीजी की कुल बिक्री का 36 प्रतिशत हिस्सा है. यह ग्रामीण मांग के महत्व और देश के समग्र आर्थिक विकास में इसके योगदान को दर्शाता है. यह इस संदर्भ में है कि भारत में ग्रामीण विकास की गतिशीलता को समझना उचित है. साथ ही, गिरते ग्रामीण विकास के अंतर्निहित कारणों को समझना और आगे का रास्ता तलाशना होगा.
क्या है जो ग्रामीण विकास को नीचे की ओर धकेल रहा है?
भारत में ग्रामीण विकास की दर कई कारणों से नीचे की ओर गिर रही है, यह सभी करक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण है, वास्तविक ग्रामीण मजदूरी वृद्धि में गिरावट. इसके अलावा, पिछले वर्षों में ग्रामीण आय में गतिहीनता आई है और ग्रामीण हिस्सों में नौकरियों की कमी आई है. साथ ही, अनियमित वर्षा वितरण ने स्थिति को और खराब कर दिया है, जिससे ग्रामीण आय और घट गई है. आय में गिरावट के कारण अंततः घटती खपत और कम माँग के कारण ऐसा हुआ है.
आपूर्ति की ओर नज़र डालें तो, ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापारियों और कृषकों द्वारा तरलता की कमी का सामना किया जा रहा है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों को पर्याप्त रूप से कम कर दिया है, लेकिन कम उधार दरों के लाभों को बैंकों द्वारा जनता को हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है, जिससे वृद्धि की संभावनाएं कम हो गई हैं. उदाहरण के तौर पर, देश के बैंकों की ऋण की वृद्धि 8.8 प्रतिशत है, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है.
यहां तक कि गैर-बैंक वित्तीय कंपनियां (एनबीएफ़सी) ग्रामीण क्षेत्रों और अनौपचारिक क्षेत्र को उधार देने के लिए पर्याप्त रूप से सतर्क हैं, खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) की बर्बाद होने के बाद. इन हालातों से किसानों, कंपनियों और व्यापारियों के नकदी प्रवाह पर गंभीर प्रभाव पड़ा. सामान्य तौर पर, शहरी क्षेत्रों के सापेक्ष ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीण क्षेत्र अधिक प्रभावित हुए. जबकि शहरी बाजारों में कई स्रोतों द्वारा धन तक ज्यादा पहुंच होगी, ग्रामीण बाजार अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए धन की पहुंच होने और गैर-उपलब्धता के हाथों विवश हैं. इसने गिरती मांग के अलावा ग्रामीण बाजारों पर भी दबाव बना दिया था. इसके परिणामस्वरूप, देश पिछले सात वर्षों में पहली बार शहरी बाजारों की तुलना में ग्रामीण बाजारों का धीमा विस्तार और विकास देखा जा रहा है.