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अयोध्या भूमि विवाद : SC ने खारिज कीं सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या फैसले के खिलाफ दाखिल सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं हैं. शीर्ष अदालत के पांच जजों की बेंच ने चेंबर में पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार के बाद अपना फैसला सुनाया. गौरतलब है कि विगत नौ नवंबर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था. उस फैसले के खिलाफ विभिन्न पक्षों ने ये पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थीं.

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Published : Dec 12, 2019, 3:27 PM IST

Updated : Dec 12, 2019, 8:10 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दाखिल सभी 18 पनर्विचार याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दीं. मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने चेंबर में पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार के बाद फैसला सुनाया. गौरतलब है कि विगत नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अयोध्या मसले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था. उस फैसले के खिलाफ विभिन्न पक्षों ने ये पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थीं.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इन पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार के बाद उन्हें खारिज करने में ज्यादा वक्त नहीं लिया. पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल थे.

कुल 18 पुनर्विचार याचिकाओं में नौ याचिकाएं तो इस मामले के नौ पक्षकारों की थीं जबकि शेष पुनर्विचार याचिकाएं 'तीसरे पक्ष' ने दायर की थीं.

इस मामले में सबसे पहले दो दिसंबर को पहली पुनर्विचार याचिका मूल वादी एम सिदि्दक के कानूनी वारिस मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने दायर की थी.

इसके बाद, छह दिसंबर को मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान, हाजी महबूब और मिसबाहुद्दीन ने दायर कीं. इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त था.

इसके बाद नौ दिसंबर को दो पुनर्विचार याचिकाएं और दायर की गईं थीं. इनमें से एक याचिका अखिल भारत हिन्दू महासभा की थी जबकि दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की.

संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल थे.

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हिन्दू महासभा ने न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करके मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को आवंटित करने के निर्देश पर सवाल उठाए थे. महासभा ने फैसले से इस अंश को हटाने का अनुरोध किया था, जिसमें विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित किया गया है.

बता दें कि गत 9 नवंबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था.

यह फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई चूंकि अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इसलिए उनके स्थान पर संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को शामिल किया गया था.

बता दें कि 14 मार्च, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने स्पष्ट कर दिया था कि सिर्फ मूल मुकदमे के पक्षकारों को ही मामले में अपनी दलीलें पेश करने की इजाजत होगी. पीठ ने इस मामले में कुछ कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था.

संविधान पीठ ने नौ नंवबर को अपने फैसले में समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि 'राम लला' विराजमान को दे दी थी और केंद्र को निर्देश दिया था कि वह अयोध्या में एक मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन आवंटित करे.

(भाषा इनपुट)

Last Updated : Dec 12, 2019, 8:10 PM IST

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