हैदराबाद:तकरीबन दो साल पहले बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर का नाम पूरे देश में गूंज रहा था. नाम गूंजे भी क्यों न क्योंकि शहर में स्थित एक संरक्षण केंद्र की 34 लड़कियों पर हुए क्रूर यौन हमले की चौंकाने वाली ख़बरें महीनों तक जो आती रहीं. टीआईएसएस (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस) की उजागर की गई सर्वेक्षण रिपोर्टों के अनुसार 15 और संरक्षण केंद्रों को दिल दहला देने वाले हालात पैदा करने का दोषी पाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट भी उठा चुकी सवाल
रिपोर्ट में दिए गये तथ्यों के साथ उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी एक संरक्षण केंद्र में चल रहे वेश्यावृत्ति के रैकेट की खबरें विवाद का एक बड़ा कारण बनी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर लचर प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन पीड़ितों के लिए सुरक्षा कहां है. जब आश्रय और सहारा देने वाले देने वाले हाथ ही उन्हें ऐसे कालकोठरियों में धकेल रहे हैं. उस संदर्भ में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार सभी राज्यों में संरक्षण केंद्रों की स्थिति चिंताजनक है! वहीं, एनसीपीसीआर का अनुमान है कि ऐसे समस्याग्रस्त संरक्षण केंद्रों की संख्या, जिनमें शरण लेने वालों को शारीरिक और यौन हमलों से बचाने की किसी उचित व्यवस्था नहीं है, उनमें त्रिपुरा (जो लगभग 86.8 प्रतिशत है) टॉप पर है. इसके बाद कर्नाटक(74.2%) है, जबकि ओडिशा(68)%), केरल (63.4%) और असम (60.9%) का स्थान आता है.
इन राज्यों की हालत बेहद खराब
आकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि न केवल सरकार द्वारा संचालित संरक्षण गृह, बल्कि निजी आश्रय गृह जो कि अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं के मोटे दान से चलते हैं, वे भी कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश में गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित 145 संरक्षण केंद्रों में लगभग 6200 बच्चों को 1 वित्तीय वर्ष की अवधि में 400 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि मिली है. यह औसत प्रति व्यक्ति रु. 6.6 लाख प्रति बच्चा है. वहीं, तेलंगाना जैसे कई राज्यों में प्रति व्यक्ति वित्त पोषण रु. 3.88 लाख है, इसके बाद बाहरी और अंतरराष्ट्रीय दाताओं के माध्यम से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में 2 लाख रुपये से अधिक धन राशि प्राप्त होती है.
सुशासन बाबू ने व्यकित की थी सहमति
इसके बावजूद जरूरी मुद्दों को संबोधित करने के लिए पर्याप्त देखभाल नहीं की जा रही है जैसे -पर्याप्त स्टाफ और बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं की कमी. यह एक मजबूत संकेत है कि सभी प्राप्त धन को कहीं और इस्तेमाल किया जा रहा है! इससे पहले, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि मुज़फ़्फ़रपुर की तरह की घटनाएं होने की संभावना है यदि दोषियों के खिलाफ कोई सख्त कानून और कड़ी कार्रवाई नहीं होती है. हालांकि, ऐसे और भी मुज़फ़्फ़रपुर हैं जो आज देश में रोजाना फल-फूल रहे हैं!