नई दिल्ली : आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी मिलने के कुछ सप्ताह के भीतर कोविड-19 वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी जीवनरक्षक दवाओं में से एक 'रेमडेसिविर' अधिकारियों की शिथिलता के कारण ड्रग डीलरों के लिए धन कमाने का एक जरियाबन गई है. एक कोविड मरीज की रिश्तेदार ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि हमें अस्पताल द्वारा रेमडेसिविर की दो शीशियों की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था, जो दिल्ली में दो अधिकृत विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं थी, लेकिन यह काला बाजार में उपलब्ध थी और इसकी कीमत ऊपर जा रही थी जैसे कि यह सोने बनी हो.
देश जब कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ रहा हो, तब दिल्ली के एक व्यवसायी का भयावह अनुभव, जो दिल्ली के एक शीर्ष निजी अस्पताल (राष्ट्रीय राजधानी में एक नामित कोविड देखभाल केंद्र) में अपने कोविड संक्रमित चचेरे भाई के इलाज की देखरेख कर रहा है, अधिकारियों के लिए आंख खोलने वाला होना चाहिए.
अत्यधिक संक्रामक वायरस ने 26000 से अधिक लोगों की जान ले ली है और दस लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं. वहीं दुनियाभर में अब तक लगभग छह लाख लोग मर चुके हैं और एक करोड़ 41 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं.
केंद्र सरकार ने पिछले महीने कोविड-19 संक्रमण के उपचार में आपातकालीन उपयोग के लिए देश में कुछ दवाओं को मंजूरी दी थी, जबकि सिप्ला को, हेटेरो और माइलान को गिलियड साइंसेज से लाइसेंस के तहत रेमडेसिविर के निर्माण और बिक्री के लिए मंजूरी मिल गई है. ग्लेनमार्क को फेबीफिरुव नाम के ब्रांड के तहत फेविपिरवीर का उत्पादन और बिक्री करने की मंजूरी मिली है. देश में रेमडेसिविर को मंजूरी मरीजों और रिश्तेदारों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आई है, क्योंकि इसे सार्स-कोव -2 वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी उपचार में से एक माना जाता है, लेकिन इसकी मंजूरी लालची ड्रग डीलरों के लिए एक आकर्षक अवसर के रूप में भी सामने आई है.
कोविड रोगी के एक चचेरे भाई ने ईटीवी भारत को बताया कि इस महीने की शुरुआत में हमें अस्पताल के डॉक्टरों में से एक का फोन मिला कि मरीज को उपचार के लिए दवा की जरूरत है. वास्तव में उन्होंने हमें सूचित किया कि यह पहले से ही उसे दी गई थी, लेकिन अब उनके पास यह ख़त्म हो गई है और वह चाहते थे कि हम दवा की दो शीशियों की व्यवस्था बाहर से करें, क्योंकि वह इसे प्रबंधित करने में सक्षम नहीं थे.
अस्पताल से फोन मिलने पर उन्होंने दवाई की खोज करनी शुरू कर दी और दिल्ली में दो अधिकृत डीलरों से संपर्क किया. उन्हें बताया गया कि उन्हें मरीज का आधार कार्ड, डॉक्टर का लिखा प्रिस्क्रिप्शन और कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट पेश करनी होगी, तब उन्हें रेमडेसिविर कीएक शीशी 4,500 रुपये की कीमत में मिलेगी.
रिश्तेदार ने अपने बड़े चचेरे भाई के लिए दवा खरीदने की अपनी भयावह खोज के बारे में बताते हुए कहा कि दुर्भाग्य से इन दोनों स्थानों पर दवा नहीं थी और आपूर्ति की कमी थी. उनका चचेरा भाई अस्पताल में वेंटीलेटर पर था. चूंकि यह जीवन और मृत्यु का मामला था, इसलिए हमने तलाश शुरू की और हमने कुछ अन्य केमिस्टों से अनुरोध किया कि वह कोई रास्ता निकालें. जब हमने रास्ता निकालने की बात कही तो कुछ लोग हमारे पास यह कहते हुए आए कि यह काला बाज़ार में उपलब्ध है.
मरीज के रिश्तेदार ने ईटीवी भारत को बताया कि हमें बताया गया कि यह 15,000 रुपये प्रति शीशी में उपलब्ध है. जिस दिन हमने इसे हासिल करने का फैसला किया, उन्होंने 35,000 रुपये प्रति शीशी के हिसाब से दाम मांगे, जबकि एक दिन पहले इसकी कीमत 27,000 रुपये प्रति शीशी थी. ब्लैक में रेमडेसिविर की कीमत बाजार में इस तरह बढ़ रही थी मानों वह सोना हो.
रिश्तेदार जिन्होंने अस्पताल के नाम को साझा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि रोगी का अब भी इलाज चल रहा है, ईटीवी को बताया कि उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट लोकल सर्किल पर अपने अनुभव को साझा करने का फैसला किया, क्योंकि इस मुद्दे को चर्चा में लाना करना जरूरी था. उन्होंने कहा कि एनसीआर क्षेत्र में इस जीवन रक्षा दवाई की ब्लैक मार्केटिंग जोरों से हो रही है, इसलिए इस मुद्दे को उठाना जरूरी है.