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धड़ल्ले से हो रही 'रेमडेसिविर' दवा की कालाबाजारी, सोने की तरह बढ़ीं कीमतें

देश में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है. इस वायरस से प्रभावित रोगियों के लिए विड-19 वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी जीवनरक्षक दवाओं में से एक 'रेमडेसिविर' की आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी मिल गई, लेकिन इसके कुछ सप्ताह बाद अधिकारियों की शिथिलता के कारण ड्रग डीलरों के लिए धन कमाने का एक जरियाबन गई है. इस संबंध में एक कोविड मरीज की रिश्तेदार ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि हमें अस्पताल द्वारा रेमडेसिविर की दो शीशियों की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था, लेकिन यह काला बाजार में उपलब्ध थी और इसकी कीमत ऊपर जा रही थी जैसे कि यह सोने की बनी हो.

रेमेडिसवियर
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Published : Jul 18, 2020, 5:39 PM IST

Updated : Jul 18, 2020, 5:54 PM IST

नई दिल्ली : आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी मिलने के कुछ सप्ताह के भीतर कोविड-19 वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी जीवनरक्षक दवाओं में से एक 'रेमडेसिविर' अधिकारियों की शिथिलता के कारण ड्रग डीलरों के लिए धन कमाने का एक जरियाबन गई है. एक कोविड मरीज की रिश्तेदार ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि हमें अस्पताल द्वारा रेमडेसिविर की दो शीशियों की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था, जो दिल्ली में दो अधिकृत विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं थी, लेकिन यह काला बाजार में उपलब्ध थी और इसकी कीमत ऊपर जा रही थी जैसे कि यह सोने बनी हो.

देश जब कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ रहा हो, तब दिल्ली के एक व्यवसायी का भयावह अनुभव, जो दिल्ली के एक शीर्ष निजी अस्पताल (राष्ट्रीय राजधानी में एक नामित कोविड देखभाल केंद्र) में अपने कोविड संक्रमित चचेरे भाई के इलाज की देखरेख कर रहा है, अधिकारियों के लिए आंख खोलने वाला होना चाहिए.

अत्यधिक संक्रामक वायरस ने 26000 से अधिक लोगों की जान ले ली है और दस लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं. वहीं दुनियाभर में अब तक लगभग छह लाख लोग मर चुके हैं और एक करोड़ 41 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं.

केंद्र सरकार ने पिछले महीने कोविड-19 संक्रमण के उपचार में आपातकालीन उपयोग के लिए देश में कुछ दवाओं को मंजूरी दी थी, जबकि सिप्ला को, हेटेरो और माइलान को गिलियड साइंसेज से लाइसेंस के तहत रेमडेसिविर के निर्माण और बिक्री के लिए मंजूरी मिल गई है. ग्लेनमार्क को फेबीफिरुव नाम के ब्रांड के तहत फेविपिरवीर का उत्पादन और बिक्री करने की मंजूरी मिली है. देश में रेमडेसिविर को मंजूरी मरीजों और रिश्तेदारों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आई है, क्योंकि इसे सार्स-कोव -2 वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी उपचार में से एक माना जाता है, लेकिन इसकी मंजूरी लालची ड्रग डीलरों के लिए एक आकर्षक अवसर के रूप में भी सामने आई है.

कोविड रोगी के एक चचेरे भाई ने ईटीवी भारत को बताया कि इस महीने की शुरुआत में हमें अस्पताल के डॉक्टरों में से एक का फोन मिला कि मरीज को उपचार के लिए दवा की जरूरत है. वास्तव में उन्होंने हमें सूचित किया कि यह पहले से ही उसे दी गई थी, लेकिन अब उनके पास यह ख़त्म हो गई है और वह चाहते थे कि हम दवा की दो शीशियों की व्यवस्था बाहर से करें, क्योंकि वह इसे प्रबंधित करने में सक्षम नहीं थे.

अस्पताल से फोन मिलने पर उन्होंने दवाई की खोज करनी शुरू कर दी और दिल्ली में दो अधिकृत डीलरों से संपर्क किया. उन्हें बताया गया कि उन्हें मरीज का आधार कार्ड, डॉक्टर का लिखा प्रिस्क्रिप्शन और कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट पेश करनी होगी, तब उन्हें रेमडेसिविर कीएक शीशी 4,500 रुपये की कीमत में मिलेगी.

रिश्तेदार ने अपने बड़े चचेरे भाई के लिए दवा खरीदने की अपनी भयावह खोज के बारे में बताते हुए कहा कि दुर्भाग्य से इन दोनों स्थानों पर दवा नहीं थी और आपूर्ति की कमी थी. उनका चचेरा भाई अस्पताल में वेंटीलेटर पर था. चूंकि यह जीवन और मृत्यु का मामला था, इसलिए हमने तलाश शुरू की और हमने कुछ अन्य केमिस्टों से अनुरोध किया कि वह कोई रास्ता निकालें. जब हमने रास्ता निकालने की बात कही तो कुछ लोग हमारे पास यह कहते हुए आए कि यह काला बाज़ार में उपलब्ध है.

मरीज के रिश्तेदार ने ईटीवी भारत को बताया कि हमें बताया गया कि यह 15,000 रुपये प्रति शीशी में उपलब्ध है. जिस दिन हमने इसे हासिल करने का फैसला किया, उन्होंने 35,000 रुपये प्रति शीशी के हिसाब से दाम मांगे, जबकि एक दिन पहले इसकी कीमत 27,000 रुपये प्रति शीशी थी. ब्लैक में रेमडेसिविर की कीमत बाजार में इस तरह बढ़ रही थी मानों वह सोना हो.

रिश्तेदार जिन्होंने अस्पताल के नाम को साझा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि रोगी का अब भी इलाज चल रहा है, ईटीवी को बताया कि उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट लोकल सर्किल पर अपने अनुभव को साझा करने का फैसला किया, क्योंकि इस मुद्दे को चर्चा में लाना करना जरूरी था. उन्होंने कहा कि एनसीआर क्षेत्र में इस जीवन रक्षा दवाई की ब्लैक मार्केटिंग जोरों से हो रही है, इसलिए इस मुद्दे को उठाना जरूरी है.

हमने तीन स्थानों दक्षिण दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और गुड़गांव में जांच की. तीनों स्थानों पर काले बाज़ार में यह दवाई उपलब्ध थी, लेकिन दिल्ली में दो अधिकृत विक्रेताओं के पास यह नहीं थी. तब मुझे अहसास हुआ कि यह कालाबाजारी का मामला है. उन्होंने कहा कि दवा विक्रेताओं ने हमें बताया कि उन्हें दो घंटे अग्रिम सूचना देनी होगी, जिसके बाद दवा उपलब्ध करा दी जाएगी. इस प्रकार से उन्होंने दिल्ली-एनसीआर में रेमडेसिविर के बड़े पैमाने पर काला बाज़ार किए जाने पर प्रकाश डाला.

दवा की कालाबाजारी करने वाले गुणवत्ता की जांच के लिए एमआरपी पर बिल देने के लिए सहमत हुए
रिश्तेदार ने कहा कि कालाबाजारी कतरने वाले ने शुरू में बिल देने से इनकार किया, लेकिन बाद में एमआरपी पर बिल देने के लिए राजी हो गए, ताकि दवा की प्रामाणिकता को क्रॉस-चेक किया जा सके. दिल्ली-एनसीआर में एक सफल व्यवसाय चलाने वाले रिश्तेदार ने कहा कि जब दवा विक्रेता ने मुझे बताया कि मुझे चालान नहीं मिलेगा, तो मैंने उनसे पूछा कि मैं दवा पर कैसे भरोसा करूंगा कि यह प्रामाणिक है. क्या होगा अगर वह मुझे शीशी में सादा पानी देते हैं. मैंने उसे बताया कि उसे मुझे एमआरपी मूल्य पर बिल देना होगा, जो चालान पर दवा की बैच संख्या को प्रदर्शित करे, ताकि कम से कम यह गारंटी दी जाए कि दवा वास्तविक है. वह इसके लिए सहमत हो गया.

खुले कालाबाजार को उजागर करना होगा
अपने चचेरे भाई के लिए दवाई लेने की कोशिश करने वाले दिल्ली के व्यापारी ने कहा ज्यादातर लोग इस जीवन रक्षक दवाई के लिए ब्लैक में ज्यादा कीमत देने में नहीं झिझकेंगे, क्योंकि उनकी प्राथमिकता अपने रिश्तेदार की जिंदगी बचाना होगी. उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मामले को इसलिए उठाया क्योंकि एक आम आदमी ऐसा नहीं कर सकता.

इस तरह इसने मुझे चोट पहुंचाई गई. भगवान की कृपा से मेरे पास पैसे थे और मुझे दवा मिल सकती थी, लेकिन तब मेरे विवेक ने मुझे टोका. मैं उस दिन अपने कार्यालय में था. मैं यह देखकर बहुत उदास हो गया कि यह मेरे देश में हो रहा है. यह बहुत खेदजनक स्थिति है. रिश्तेदार ने ईटीवी भारत को पुष्टि की कि अंततः वह कंपनी हेटेरो के अधिकृत डीलर से दवाई खरीद पाया और इसे नई दिल्ली के अस्पताल में पहुंचाया गया.

कालाबाजारी पर अंकुश लगाने का कोई कारगर तंत्र नहीं
स्थानीय सर्कल के संस्थापक सचिन तपारिया, जिन्होंने अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया, ईटीवी भारत को बताया कि ऐसी महत्वपूर्ण दवाओं की कीमत की जांच करने के लिए देश में कोई प्रभावी तंत्र नहीं है. सचिन तपारिया ने कहा कि यह दिल्ली के बड़े अस्पतालों में भी हो रहा है. ऐसा पूरे देश में हो रहा है. अस्पताल रिश्तेदारों को बताते हैं कि उनके पास रेमडेसिविर की कुछ ही खुराक हैं, बाकी आपको खुद व्यवस्था करनी होगी.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि होता यह है कि जब आप एक केमिस्ट के पास जाते हैं, तो वह आपको बताएंगे कि ब्लैक मार्केट में रेट 15,000 रुपये से 60,000 रुपये तक है. वह आपको बताते हैं कि वे दो घंटे के भीतर व्यवस्था करेंगे. यदि आप अधिकृत डीलरों के पास जाते हैं तो वहां यह उपलब्ध नहीं होगी. आशंका है कि उनमें से कुछ ने अपने स्टॉक को पिछले रास्ते से कालाबाजार में बेच दिया होगा.

स्थानीय सर्किल की शिकायत के बाद भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल, वीजी सोमानी ने राज्य अधिकारियों से रेमडेसिविर की कालाबाजारी की जांच करने के लिए कहा. वीजी सोमानी ने सोमवार को भेजे गए पत्र में राज्य के अधिकारियों को लिखा कि इस कार्यालय को स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से एक पत्र प्राप्त हुआ है, जो कालाबाजारी के बारे में चिंताओं को बढ़ाता है और कुछ व्यक्तियों द्वारा दवा रेमडेसिविर को निर्धारित मूल्य से ज्यादा कीमत पर बेचे जाने की जानकारी देता है.

वीजी सोमानी ने पत्र में लिखा है कि उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रवर्तन अधिकारियों को निर्देश दें कि एमआरपी से ऊपर दवा रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी और बिक्री को रोकने के लिए इस मामले में सख्ती बरतें.

(कृष्णानंद त्रिपाठी, ईटीवी भारत)

Last Updated : Jul 18, 2020, 5:54 PM IST

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