बक्सर : लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ था, यह दिन देश के लिए बहुत खास है. भारत को आजाद कराने के लिए इस दिन लाखों लोगों ने अपने प्राण गंवाए थे.
आज हम अपनी आजादी की 73वीं वर्षगांठ जश्न मना रहे हैं, तो केवल उन्हीं लोगों की वजह से जो अपने प्राणों की चिंता किए बिना भारत देश के लिए शहीद हो गए.
मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना ऐसा मारक और अचूक हथियार बनाया, जिसके आगे दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने पड़े. आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के मोहनदास को बिहार के बक्सर के उनके पड़ावों और घटनाओं ने महात्मा बना दिया.
सत्याग्रह आंदोलन में बक्सर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. अहिंसा के लिए विख्यात साबरमती के संत ने पूरे शाहाबाद में स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद रखी थी. क्योंकि'अहिंसा परमोधर्म' के पुजारी महात्मा गांधी का आगमन बक्सर में पांच बार हुआ था. उनके सादगी भरे विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.
जिनमें असहयोग आंदोलन के सिलसिले में 11 अगस्त 1921 को और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 25 अप्रैल 1934 को बापू यहां आए. इससे पूर्व भी वर्ष 1914, 1917 व 1919 को महात्मा गांधी ने बक्सर का दौरा किया था.
1947 से पहले अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने के लिए देशभर से हुंकार भरी जा रही थी. विश्वामित्र की पावन नगरी यानी बक्सर में इसकी गूंज कुछ ज्यादा ही सुनाई पड़ रही थी.