सिवान : भारत जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब असंख्य लोगों ने देश की आजादी में योगदान दिया. ऐसे ही एक शख्स रहे हैं, बिहार के सिवान जिला निवासी उमाशंकर प्रसाद. उन्होंने महाराजगंज में अपने निजी कोष से स्कूल स्थापित अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद की.
1927-28 में पूरा भारत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगा रहा था. इसी समय मात्र 28 वर्ष की उम्र में सिवान जिले के महाराजगंज में एक युवा, उमाशंकर प्रसाद भी अंग्रेजों के खिलाफ गुरू की भूमिका में सामने आया.
उमाशंकर प्रसाद ने अपनी निजी भूमि पर निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल की स्थापना की. उन्होंने युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का पाठ पढ़ाया. उमाशंकर प्रसाद ने अपनी बहादुरी और हिम्मत से अंग्रेजों के नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया.
समाजसेवी जगदीश प्रसाद बताते हैं कि सन 1928 में स्वतंत्रता के लिए पूरे देश में महात्मा गांधी घूम घूम कर लोगों को जागरुक कर रहे थे. इसी बीच बापू ने सिवान जिले के महाराजगंज में कदम रखा. महात्मा गांधी के पैर महाराजगंज आगमन पर आर्थिक अभाव में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर न पड़ जाएं.
जगदीश प्रसाद ने बताया कि उन्होंने अपने पास से बापू को चांदी के 1001 रुपए के सिक्के भेंट कर कहा कि, 'बापू...देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई में पैसे रुपये की कोई कमी ना हो इसलिए आप मेरी तरफ से यह भेंट स्वीकार कीजिए.'