नई दिल्ली :बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. बीजेपी और जेडीयू ने कड़ी मेहनत की, लेकिन एनडीए की जीत में एक बड़ा फैक्टर भी सामने आ रहा है. वह फैक्टर था एमआईएम और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का सेक्युलर फोर्सेज के तौर पर महागठबंधन में सेंध लगाना.
आने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा असर
बिहार परिणाम का यही ट्रेंड आने वाले अगले पश्चिम बंगाल और फिर उसके बाद कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगा. क्या वास्तविकता में ओवैसी, उपेंद्र कुशवाहा और मायावती की पार्टियों ने आरजेडी और महागठबंधन का खेल बिगाड़ा है. क्या सचमुच ये पार्टियां बीजेपी की बी टीम के तौर पर काम कर रहीं हैं.
5 सीटें जीतकर एमआईएम ने बिगाड़ा खेल
अगर देखा जाए तो भले ही बिहार चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच रहा, मगर आरजेडी और महागठबंधन की पार्टियों का खेल बिगाड़ने में एआईएमआईएम, बसपा, रालोसपा और पप्पू यादव की पार्टी ने वोटकटवा का काम किया. इसमें मुख्य भूमिका ओवैसी की पार्टी की रही और पहले से ही विपक्षी पार्टियां एमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाती रही. ऐसे में इस चुनाव में 5 सीटें मिलने के बाद ओवैसी ने यूपी और बंगाल में भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.
अब यूपी और बंगाल में भी चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही एमआईएम
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ओवैसी की पार्टी ने बिहार में आरजेडी के एमवाय समीकरण को बिगाड़ा है. ओवैसी ने बिहार में 20 सीटों पर चुना लड़ा और चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में चार करोड़ से ज्यादा वोटिंग हुई थी और इनमे से 1.24 फीसदी वोट एमआईएम को मिले, जो महागठबंधन का खेल बिगाड़ने में काफी थे. ऐसे में ओवैसी के प. बंगाल और यूपी और उसके बाद अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ने की घोषणा कहीं न कहीं कांग्रेस और उसके गठबंधन की पार्टियों के लिए चिन्ता का सबब बन गया है.