अहमदाबाद :साल 2020 में कोरोना महामारी ने जहां सबको झकझोर कर रख दिया. वहीं, मध्य प्रदेश के इंदौर के राजमिस्त्री जितेंद्र और रानू अंजने के लिए यह समय दोहरी मार की तरह साबित हुआ. अधिकांश लोग कोरोना वायरस के बचने का उपाय ढूंढ रहे थे वहीं, यह गरीब दंपती अपनी नवजात की जान बचाने के लिए जूझ रहे थे.
दरअसल, राजमिस्त्री का काम करने वाली रानू को इसी साल अप्रैल में पता चला कि वह गर्भवती हैं. अभी उसको गर्भवती हुए दो ही महीने बीते थे कि उसको पता चला कि वह लीवर की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. ऐसे में रानू को अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की चिंता सताने लगी. इस दंपती ने सारी उम्मीदें खो दी थीं. इसी बीच उनको किसी ने उन्हें अहमदाबाद के सिविल अस्पताल जाने की सलाह दी.
6 महीने बाद अचानक बिगड़ी तबीयत
अपनी किस्मत को अजमाने के लिए इंदौर के जितेंद्र और रानू अंजने ने इस सलाह को माना. अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में इलाज कराने से रानू की सेहत में सुधार होने लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 6 महीने के बाद रानू की हालत गंभीर हो गई. राजमिस्त्री दंपती ने एक बार फिर सिविल अस्पताल के डॉक्टरों से सलाह ली. इस बार समस्या रानू को लेकर नहीं, बल्कि उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर थी.
मात्र 436 ग्राम का नवजात
अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के डॉक्टरों के सामने मां और बच्चे दोनों को बचाने की समस्या थी. सिविल अस्पताल की स्त्री रोग विभाग की डॉ. बेला शाह के अनुसार बच्चे के जीवित रहने की उम्मीद बहुत कम थी. कड़ी मशक्कत के बाद अक्टूबर में रानू ने 436 ग्राम की बच्ची को जन्म दिया.
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