सन 1917 अप्रैल. चम्पारण की धरती. सत्य और अहिंसा का एक नया प्रयोग. करने वाले थे मोहनदास करमचन्द गांधी. इससे पहले दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ऐसा प्रयोग (सत्याग्रह) कर चुके थे. वहां सफलता भी मिल चुकी थी. इस 'प्रयोग' ने इन्हें हिन्दुस्तान में खास पहचान दिलाई थी. संभवत: यही कारण था कि चम्पारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने तत्कालीन अन्य नेताओं से चम्पारण आकर किसानों के हालात जानने-समझने के लिए आग्रह न कर, गांधीजी से अपनी तकलीफ सुनाई और उन्हें बुलाया.
उस दौर के राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करने पर दिखता है कि 1917 से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली पंक्ति के नेताओं में गांधीजी नहीं थे. फिर भी देश के एक छोर पर निवास करने वाले, एक किसान के मन में गांधीजी के प्रति इस कदर भरोसा काबिलेगौर है. गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में चम्पारण पर विस्तारपूर्वक लिखा है. उन्होंने बताया है कि चम्पारण में 'अहिंसा देवी का साक्षात्कार' किया.
भारत में, महात्मा गांधी की अगुआई में, पहले सत्याग्रह की प्रयोग स्थली बनी–चम्पारण की सरजमीं. 1917 के चम्पारण सत्याग्रह से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की प्रकृति में बदलाव आया. इसी के बाद गांधीजी की जगह, स्वाधीनता आंदोलन और कांग्रेस के केन्द्र में, बनी.
राजकुमार शुक्ल के निवेदन पर जाते समय गांधीजी ने यह नहीं सोचा था कि वहां 'सत्याग्रह' करने जा रहे हैं, कि वहां इतने दिन रुकने पडेंग़े, कि वहां शिक्षा को लेकर अपनी अवधारणा को असली रूप देंगे, कि वहां कस्तूर बाई गांधी, राजेन्द्र प्रसाद सरीखे सभी महत्त्वपूर्ण लोगों को बुलाएंगे या चम्पारण के किसानों की असली स्थिति जानने के लिए शुरू की गयी जांच-पड़ताल निकट भविष्य में ही इतना महत्त्वपूर्ण साबित होगी. या इस चम्पारण-यात्रा से 'सत्याग्रह' के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ेगा.
'सत्याग्रह' शब्द की उत्पत्ति के बारे में गांधीजी ने बताया है कि 'सत्याग्रह' शब्द की उत्पत्ति के पहले उस वस्तु की उत्पत्ति हुई. वस्तु का मतलब, उसका, जिसे बाद में ज्ञान की दुनिया में 'सत्याग्रह' के नाम से जाना गया. इसकी उत्पत्ति के समय गांधीजी भी उसके स्वरूप को पहचान नहीं सके थे. सभी लोग उसे गुजराती में 'पैसिव रेजिस्टेंस' के अंग्रेजी नाम से पहचानते थे. दक्षिण अफ्रीका में, गोरों की एक सभा में, गांधीजी ने देखा कि 'पैसिव रेजिस्टेंस' का संकुचित अर्थ किया जाता है. इसे कमजोरों का हथियार माना जाता है. यह भी माना जाता है कि इसमें द्वेष हो सकता है और इसका अंतिम स्वरूप हिंसा में प्रकट हो सकता है. ऐसे में, गांधीजी ने इसकी मुखालफत की.
हर नयी या मौलिक परिघटना को संबोधित करने के लिये नये शब्द की जरूरत पड़ती है. एक ऐसा शब्द जो उस परिघटना को, उसके पूरे परिप्रेक्ष्य में, जाहिर कर सके. कई बार पुराने शब्दों में परिघटनाएं नया अर्थ भर देती हैं. तब पुराना अर्थ विस्थापित हो जाता है और नया अर्थ उस शब्द के साथ मजबूती से संबद्ध हो जाता है.
दक्षिण अफ्रीका में सत्ता के खिलाफ, जिस रूप में गांधीजी की अगुवाई में संघर्ष हुआ, उसकी अर्थवत्ता को अभिव्यक्त कर पाने में 'पैसिव रेजिस्टेंस' शब्द सक्षम नहीं था. इसलिए 'हिन्दुस्तानियों के लिए अपनी लड़ाई का सच्चा परिचय देने के लिए नये शब्द की योजना करना आवश्यक हो गया'. गांधीजी को इसके लिए वाजिब एवं स्वतंत्र शब्द नहीं सूझ रहा था. लिहाजा इन्होंने नाम मात्र का इनाम रखकर 'इण्डियन ओपीनियन' के पाठकों में प्रतियोगिता करवाई. इनाम मिला, मगनलाल गांधी को. इन्होंने सत+आग्र्रह की संधि करके 'सदाग्रह' शब्द बनाकर भेजा. गांधीजी ने 'सदाग्रह' शब्द को और अधिक स्पष्ट करने के विचार से बीच में ‘य' अक्षर बढ़ाकर 'सत्याग्रह' शब्द बनाया. नतीजतन गुजराती में यह लड़ाई, इस नाम से, पहचानी जाने लगी. कालांतार में आलम यह कि दुनिया भर में अहिंसक संघर्ष का पर्याय यह शब्द बन गया.
दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह के दिनों से ही जाहिर हो गया था कि मोहनदास करमचंद गांधी के चिंतन और कर्म का बुनियाद सत्य और अहिंसा है. अहिंसा को गांधी जी सत्याग्रह की सबसे बड़ी कसौटी मानते थे. लिहाजा, इस पर वाद-विवाद-संवाद होने लगे. अहिंसा को सबसे बड़ा मूल्य स्थापित करने पर अनेक लोग तब भी सहमत नहीं थे, आज भी नहीं हैं.
अहिंसा को बुनियादी कसौटी मानने से इंकार बिल्कुल दो वैचारिक ध्रुवों पर खड़े, परस्पर विरोधी, लोग भी करते हैं. धुर दक्षिणपंथी और धुर वामपंथी लोग, जो अन्य मसले पर एक-दूसरे से असहमत होते हैं, इस मुद्दे पर एकमत रखते हैं. बहरहाल, महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय भी गांधीजी के इस मत से घोर असहमत थे. लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी के बीच अहिंसा को लेकर हुआ असहमत संवाद उल्लेखनीय है. कोलकाता से प्रकाशित 'मॉडर्न रिव्यू' के जुलाई 1916 अंक में लाला लाजपत राय ने अहिंसा पर सवाल खड़ा करते हुए 'अहिंसा परमो धर्म' एक सत्य या सनक शीर्षक लेख लिखा. इसमें लाला जी ने लिखा कि 'मेरे मन में गांधी के व्यक्तित्व के प्रति अत्यधिक सम्मान का भाव है.