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रेल लॉकडाउन : विशेषज्ञों को सता रहा रेलवे के निजीकरण का भय

कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन के कारण इतिहास में पहली बार देशव्यापी रेल बंदी हुई है. ऐसे में विशेषज्ञों को रेलवे के निजीकरण का भय सताने लगा है.

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प्रतीकात्मक चित्र

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Published : Apr 20, 2020, 5:58 PM IST

पटना :कोरोना वायरस के कहर के कारण देशभर में गत 25 मार्च से लॉकडाउन जारी है. ऐसे में देश के इतिहास में पहला मौका है, जब रेल यात्रा पर भी पूरी तरह से पांबदी लगाई गई है. हजारों यात्रियों को हर रोज मंजिल तक पहुंचाने वाली ट्रेन को यात्रियों का इंतजार है. लॉकडाउन के कारण रेलवे पर भी निजीकरण का खतरा मंडराने लगा है.

भारतीय रेल 167 साल की यात्रा पूरी कर चुकी है. 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच पहले ट्रेन चली थी. भारत में 90 फीसदी लोग ट्रेनों से यात्रा करते हैं. कोरोना वायरस के खतरे और लॉकडाउन के कारण इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुई है. देश में लॉकडाउन के बाद पहली बार रेलवे के 16 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को घर बैठना पड़ा है.

ईटीवी भारत की रेलवे पर स्पेशल रिपोर्ट.

20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का होता है संचालन
भारत में रेल मार्गों की लंबाई 63 हजार किलोमीटर से ज्यादा बताई जाती है. भारतीय रेल हर रोज 20 हजार से ज्यादा ट्रेनों का संचालन करती हैं और लगभग हर रोज ढाई करोड़ लोग ट्रेनों से सफर करते हैं. लॉकडाउन के कारण रेलवे की रफ्तार पर ब्रेक लग गई है और ऐसे में विशेषज्ञों को निजीकरण का भय सताने लगा है.

घाटे के बाद रेलवे का हो सकता है निजीकरण
चर्चित अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का कहना है कि इतिहास में पहली बार रेल बंदी हुई है. उन्होंने कहा कि इससे पहले जॉर्ज फर्नांडिस ने मजदूर यूनियन का सहारा लेकर हड़ताल कराई थी और कुछ ट्रेन सेवाएं बाधित हुई थी. लेकिन इस बार व्यापक स्तर पर रेल सेवाएं ठप हैं. हर रोज रेलवे को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेलवे घाटे की भरपाई कैसे करेगी.

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दिवाकर का कहना है कि अगर सरकार पहले से ही कदम उठाती और समय रहते अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद कर दी गई होतीं तो आज की तारीख में रेलवे को बंद करने की नौबत नहीं आती. हालात ऐसे हो गए हैं कि घाटे की भरपाई के लिए सरकार ने रेलवे के निजीकरण के मार्ग को प्रशस्त कर दिया है.

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