नई दिल्ली : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजाति आरक्षण के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) पर निशाना साधा. राहुल गांधी ने आगे कहा कि भाजपा और आरएसएस की विचारधारा आरक्षण के खिलाफ है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी को पारित आदेश में कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर वह चार सप्ताह के बाद सुनवाई करेगा.
राहुल ने कहा कि वे (बीजेपी, आरएसएस) कभी नहीं चाहते हैं कि अनुसुचित जाति (एससी) / अनुसुचित जनजाति (एसटी) प्रगति करे. आरएसएस और बीजेपी संस्थागत ढांचे को तोड़ रहे हैं. मैं एससी / एसटी / ओबीसी और दलितों को बताना चाहता हूं कि हम आरक्षण को कभी खत्म नहीं होने देंगे चाहे वह मोदी या मोहन भागवत का सपना क्यों न हो.
राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस और भाजपा की विचारधारा एससी-एसएटी आरक्षण के खिलाफ है. वे किसी ना किसी तरह हिंदुस्तान से आरक्षण खत्म करना चाहते हैं. वे नहीं चाहते हैं कि अनुसुचित जाति, जनजाति आगे बढ़े.
राहुल ने कहा कि आरक्षण संविधान का मुख्य भाग है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता है. यह संविधान पर प्रहार है. उन्होंने कहा कि हमें संसद में नहीं बोलने दिया जाता है. आरएसएस और बीजेपी कितना भी सपना देख लें हम आरक्षण को खत्म नहीं होने देंगे.
उन्होंने कहा कि बीजेपी और आरएसएस के डीएनए में आरक्षण शब्द चुभता है. बीजेपी आरक्षण को समाप्त करना चाहते हैं. राहुल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए आगे कहा कि हर संस्थान को तोड़ा जा रहा है, न्यायतंत्र पर दबाव बनाया जा रहा है.
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि बीजेपी संविधान के प्रमुख स्तंभों को धीरे-धीरे समाप्त करने का काम कर रही है.
जानें क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है जिसमें किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा करने का अधिकार सन्निहित हो और कोई अदालत राज्य सरकार को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने का आदेश दे सकती है.
न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, 'कानून की नजर में इस अदालत को कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार इस संदर्भ में आरक्षण देने को बाध्य नहीं है. कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जिसमें किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा करना सन्निहित हो. अदालत द्वारा ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जा सकता, जिसमें राज्य सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण देने का निर्देश दिया जाए.'
सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर संबद्ध डाटा संग्रह की अनिवार्यता का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत ने जोर देते हुए कहा कि यह कवायद आरक्षण शुरू करने के लिए जरूरी है। राज्य सरकार ने आरक्षण नहीं देने का फैसला लेने पर डाटा संग्रह की यह कवायद तब जरूरी नहीं है.
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शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार का यह अधिकार है कि वह नौकरियों में आरक्षण देने या प्रोन्नति में आरक्षण देने का फैसला करे या नहीं। यही नहीं, राज्य सरकार ऐसा करने के लिए किसी तरह से बाध्य नहीं है.
बता दें कि प्रोन्नति में आरक्षण का मसला एक बार फिर तूल पकड़ सकता है. इस मसले पर लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को पलटने की मांग की है. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति में आरक्षण देने के लिए सरकारें बाध्य नहीं हैं. मामले की राजनीतिक अहमियत को देखते हुए चिराग को विपक्ष समेत कई दलों का समर्थन मिल सकता है.