नई दिल्ली : राजस्थान में कांग्रेस के बागी विधायकों ने विधानसभा स्पीकर द्वारा सदस्यता रद्द करने के लिए दी गई नोटिस को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट ने बागी विधायकों की स्पीकर की शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया है. संवैधानिक मामलों के जानकार का कहना है कि सर्वोच्च अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 साल पहले ही इस मुद्दे को तय किया था.
राजस्थान सियासी संकट पर ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया, जिसमें स्पीकर की नोटिस जारी करने की शक्ति को चुनौती दी गई है.
15 जुलाई को, राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी ने पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 कांग्रेस विधायकों को नोटिस जारी किया था, क्योंकि उन्होंने जयपुर में पार्टी की बैठक में शामिल होने के निर्देश का पालन नहीं किया था. अशोक गहलोत सरकार की शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी.
पीडीटी आचार्य ने कहा, 'स्पीकर नियमों के अनुसार नोटिस जारी करते हैं, इन नियमों को 10वीं अनुसूची के तहत तैयार किया गया है और संसद द्वारा अनुमोदित किया गया है. इस नियम के तहत, याचिकाकर्ता को मामले की तर्कशीलता पर संतोष करना होगा और स्पीकर को नहीं.'
उन्होंने कहा कि बागी विधायकों को नोटिस जारी करने की स्पीकर की शक्ति को पहले ही 1992 में किहोतो होलोहन मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने बरकरार रखा है. इस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि न्यायिक समीक्षा स्पीकर के फैसले के बाद हो सकती है और अदालतें उससे पहले हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं.
आचार्य ने ईटीवी भारत को बताया कि 1992 में कानून में तय किया गया था कि स्पीकर द्वारा मेरिट पर अंतिम निर्णय लेने से पहले कार्रवाई के लिए कोई न्यायिक हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.
राजस्थान में, हाईकोर्ट ने यथास्थिति का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा सचिन पायलट खेमे के बागी कांग्रेस विधायकों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई को रोक दिया है.
साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट ने राहत देते हुए सचिन पायलट की याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें मामले में केंद्र सरकार को एक पक्ष बनने की अनुमति देने की मांग की गई है, क्योंकि यह मामला 1985 के दल-बदल विरोधी कानून से संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधानों से जुड़ा है.
हाईकोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए आचार्य ने कहा, 'इसका मतलब है कि आप स्पीकर द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दे सकते हैं, यानी नोटिस की संवैधानिकता को ही चुनौती दे सकते हैं.'
दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता
आचार्य कहते हैं कि कानून के तहत, अयोग्यता के लिए नोटिस दो आधारों पर जारी किया जा सकता है. पहला, अगर किसी विधायक ने सदन में पार्टी व्हिप की अवहेलना की है. दूसरा आधार यह है कि यदि किसी विधायक ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव ने कहा, 'स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने के आधार को कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में इसकी व्याख्या की है.'
उन्होंने कहा, 'एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक सदस्य द्वारा कुछ विपक्षी सदस्यों के साथ राज्यपाल के पास जाना और राज्यपाल से अपनी ही सरकार को बर्खास्त करने का अनुरोध करना, इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उन्होंने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है.' उन्होंने आगे कहा कि सदस्य के केवल एक कार्य को पर्याप्त सबूत माना गया.