हैदराबाद : गणतंत्र दिवस के अवसर पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद एक नाम खूब लोकप्रिय हुआ, वह नाम है राकेश टिकैत. यह नाम अनसुना या नया नहीं है. इससे पहले भी टिकैत ने किसानों के हक की लड़ाई लड़ी है. किसानों के हक के लिए टिकैत ने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. कहा जाता है कि पिता महेंद्र का प्रभाव टिकैत पर खूब पड़ा है.
दरअसल, गणंत्रत दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा के बाद यूपी गेट खाली नजर आ रहा था. आंदोलन स्थल पर बिजली-पानी बंद कर दिया गया और आंदोलन स्थल पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया, जिसके बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने किसान महापंचायत बुलाई, जिसमें आंदोलन को खत्म करने का फैसला लिया गया था, लेकिन अचानक राकेश टिकैत भावुक हो गए.
राकेश टिकैत का कहना था कि बीजेपी विधायक और कुछ लोग लाठी-डंडों के साथ तैयार हैं और किसानों की पिटाई करने की योजना बनाई जा रही है, ऐसे में तो वो धरना स्थल से नहीं हटेंगे.
राकेश टिकैत ने गाजीपुर बॉर्डर पर रोते हुए भावनात्मक अपील की थी, जिससे उनके समर्थक मजबूती से उनके साथ जुड़ गए. इसके जरिए राकेश टिकैत ने अपने भाई के साथ भी एक अनकही दूरी खत्म कर दिया. इसके बाद नरेश टिकैत ने घोषणा की कि मेरे भाई के आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे.
कौन हैं राकेश टिकैत
4 जून 1969 को राकेश टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में हुआ था. टिकैत कई दशकों से उत्तर प्रदेश के किसान नेता हैं और किसानों के हक की लड़ाई में उन्हें 44 बार जेल जाना पड़ा है. बता दें कि मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध करते हुए टिकैत को 39 दिनों के लिए जेल में रहना पड़ा था. कुछ साल पहले दिल्ली में केंद्र सरकार से गन्ने के समर्थन मूल्य में वृद्धि की मांग करते हुए, उन्होंने संसद के बाहर गन्ना जलाया, इसके लिए उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया था.
राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत मुजफ्फरनगर के एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय किसान यूनियन की यूपी शाखा की स्थापना की थी, जिसे मूल रूप से चौधरी चरण सिंह ने स्थापित किया गया था, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने.
राकेश टिकैत ने राजनीति में भी अपना भाग्य आजमाया. टिकैत ने 2014 के लोकसभा चुनावों में आरएलडी के टिकट से अमरोहा से चुनाव लड़ा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया और हार का सामना करना पड़ा.
मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लॉ (एलएलबी) की भी पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी की. साल 1992 की बात है, इस दौरान टिकैत दिल्ली पुलिस की नौकरी कर रहे थे. इसके एक साल बाद 1993-1994 में टिकैत के पिता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में लाल किले पर किसान आंदोलन चल रहा था.
इस आंदोलन को खत्म कराने के लिए सरकार ने टिकैत पर दबाव बनाया. ऐसा कहा जाता है कि टिकैत से सरकर ने कहा कि वह अपने पिता और भाइयों को आंदोलन खत्म करने को कहें, जिसके बाद राकेश टिकैत पुलिस की नौकरी छोड़ किसानों के साथ खड़े हो गए थे. पिता की मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की बागडोर संभाल ली. वो आज भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.