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चीनी सामान के बहिष्कार में समझदारी नहीं : प्रोफेसर अलका आचार्य

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की प्रोफेसर अलका आचार्य का मानना है कि सीमा विवाद को लेकर चीन के साथ उपजे तनाव के बीच चीनी सामान के बहिष्कार में भारत की समझदारी नहीं दिखाई पड़ती. जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल के पूर्वी एशियाई अध्ययन केंद्र में चीनी अध्ययन की प्रोफेसर अलका ने भारत-चीन संबंधों और चीन की विदेश नीति के अन्य पहलुओं पर ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की. पढ़ें यह खास इंटरव्यू...

चीनी सामान के बहिष्कार में नहीं है समझदारी
चीनी सामान के बहिष्कार में नहीं है समझदारी

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Published : Jun 30, 2020, 1:33 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 6:08 PM IST

हैदराबाद : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल के पूर्वी एशियाई अध्ययन केंद्र में चीनी अध्ययन की प्रोफेसर अलका आचार्य मौजूदा परिस्थितियों में चीनी सामान के बहिष्कार को समझदारी भरा निर्णय नहीं मानतीं. उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव इतना गहरा समाया हुआ है कि उनके लिए यह लगभग जरूरी सा हो गया है.

वर्ष 1993 से मास्टर्स और एम.फिल के छात्रों को चीनी विदेश नीति व राजनीतिक अर्थव्यवस्था पढ़ा रहीं प्रोफेसर अलका चीनी अध्ययन संस्थान (नई दिल्ली) की फेलो और पूर्वी एशियाई मामलों की पत्रिका चाइना रिपोर्ट की संपादक भी हैं. वह क्रॉसिंग ए ब्रिज ऑफ ड्रीम्स : इंडिया-चाइना, 2002 में प्रकाशित पुस्तक की संयुक्त संपादक हैं, जिन्होंने मुंबई से प्रकाशित इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में कई पुस्तकों और नियमित रूप से फीचर्स में योगदान दिया है.

भारत-चीन संबंधों और चीन की विदेश नीति के अन्य पहलुओं पर व्यापक रूप से लिख चुकीं प्रोफेसर अलका ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की, जिनके मुख्य अंश प्रकार हैं :-

प्रश्न : क्या 15 जून की रात को गलवान घाटी में टकराव 45 वर्षों में सबसे बुरी स्थिति थी? झड़प का तात्कालिक कारण क्या था? उस रात वास्तव में क्या हुआ था?

गलवान घाटी में संघर्ष निस्संदेह पिछले 45 वर्षों में भारत और चीन के बीच सबसे खराब संघर्ष था. यह पहली बार था, जब दोनों देशों के सैनिकों के आमने-सामने आने से दोनों ही तरफ इतनी तबाही हुई. पिछले तीन दशकों से भारत और चीन, दोनों ने सीमा पर दावों का प्रबंधन करने के लिए समझौतों और प्रोटोकॉल के एक विस्तृत तंत्र का निर्माण किया और इस पर उचित गर्व भी किया. यह दुनिया की सबसे लंबी, विवादित, लेकिन शांतिपूर्ण सीमा थी. तीन दशकों में इन सीमाओं पर कोई गोली नहीं चलाई गई थी.

प्रश्न : प्रधानमंत्री कहते हैं कि चीन से कोई घुसपैठ नहीं है. बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने का प्रयास किया गया. विपक्षी दलों ने मोदी के बयान और विवाद से निबटने के तरीके पर सवाल उठाए हैं. आपका क्या नजरिया है?

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पूर्वी लद्दाख में जो कुछ हो रहा था, उसके बारे में कोई आधिकारिक बयान मई की शुरुआत में जारी नहीं किया गया था जबकि उस दौरान कई क्षेत्रों में एक साथ सीमा पर झड़पें और हाथापाई हुई थीं. हालांकि, मई की शुरुआत से समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में इस मामले पर जमकर बहस हो रही थी. इसके अलावा उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के आधार पर ऐसे दृश्य दिख रहे थे, जो सरकार के दावों को झूठा साबित कर रहे थे. मेरे विचार में, यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण था - क्योंकि इसने न केवल भ्रम पैदा किया बल्कि रणनीतिक समुदाय के भीतर दरार पड़ गई.

प्रश्न : सोशल मीडिया में और प्राइम टाइम में टेलीविजन समाचार बुलेटिनों में चीनी सामानों के बहिष्कार के लिए जोर-शोर से प्रचार चल रहा है. क्या यह आर्थिक मोर्चे पर व्यावहारिक है? यदि हां, तो क्या यह भविष्य में चीन के साथ भारत की स्थिति को मजबूत करने या संघर्ष को कम करने के लिए उपयोगी होगा?

चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान राष्ट्रवादी मंच पर नया नहीं हैं. जब भी भारत-चीन सीमा विवाद सामने आया है और विशेष रूप से 72 दिनों के डोकलाम गतिरोध के दौरान हमने ऐसे आह्वानों को देखा है. लेकिन चीन से व्यापार सामान्य रूप से चलता रहा. इस बार गलवान टकराव ने राष्ट्रवादी सोच को भावनात्मक रूप दे दिया है, जिससे प्रेरित होकर न केवल आम जनता बल्कि कुछ व्यापारिक संघ और राजनीतिक लोग भी इसका समर्थन कर रहे हैं. चीनी सामान के बहिष्कार और व्यापार प्रतिबंध के लिए मांगें उठ रही हैं.

कुछ राज्य सरकारों ने चीनी परियोजनाओं को 'होल्ड' पर भी रखा है. हुवेई की 5G नेटवर्क की बोली पर भी रोक लगाने की मांग उठ रही है. मैं यह कहना चाहूंगी कि जो लोग चीनी सामान के बहिष्कार की मांग कर रहे हैं, उन्होंने पूरा परिदृश्य नहीं समझा है. सवाल अब यह नहीं है कि हम चीन के बिना क्या कर सकते हैं और क्या नहीं. मुद्दा यह है कि यह आर्थिक जुड़ाव दोनों देशों के बीच इतना गहरा समाया हुआ है कि उनके लिए यह लगभग जरूरी सा हो गया है.

वस्तुतः चीन, भारत में एफडीआई का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ स्रोत है. इन रूढ़िवादी अनुमानों पर विश्वास किया जाए तो यह भारतीय विकास की कहानी को आधा दशक पीछे धकेल देगा. चीन विरोधी भावना में हमें इतना नहीं बह जाना चाहिए कि जिस सौदेबाजी की शक्ति से हम अपने संभावित लाभ के लिए दोहन कर सकते हैं, उससे वंचित हो जाएं.

प्रश्न : चीन ने पड़ोसी देशों - श्रीलंका और नेपाल में कई विकासात्मक पहल की है. क्या है चीन की रणनीति? हमारे पड़ोस के देशों के प्रति भारत का रवैया कैसा रहा है?

भारत के पड़ोस में चीन ने ढेरों आधारभूत संरचनाओं के विकास को बढ़ावा दिया है. खासकर उन देशों में, जिनसे भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है और दुनिया के इस हिस्से में बड़े रणनीतिक बदलाव होने की भी संभावना है. इससे भारत अलर्ट मोड में है. बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर चीन का निर्माण भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सीमा से लगा हुआ है.

श्रीलंका का हंबनटोटा डीप सी पोर्ट और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट में चीन की मौजूदगी भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर विषय बन गए हैं. इन क्षेत्रों में चीन की मौजूदगी से भारत के घेराव की आशंका काफी बढ़ जाती है. धीरे-धीरे चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश के जरिए पूरे एशिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है. चीन ने मध्य, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में भू राजनीतिक वास्तविकताओं को बदलने में अपने महाद्वीपीय और समुद्री भूगोल का लाभ उठाने की कोशिश की है. चीन की महत्वाकांक्षी 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' उसकी विदेश नीति की एक दूरदर्शी पहल है.

प्रश्न : चीन पूरे गलवान घाटी क्षेत्र पर अधिकार का दावा करता है. भविष्य में इसका क्या परिणाम होगा?

इसने चीन के इरादों के बारे में सवाल खड़े किए हैं और इसकी कई लोगों ने आलोचना की है. हालांकि चीन के प्रति भारत की 'तुष्टिकरण' की नीति के बारे में जो कहा जा रहा है, वह मुझे अनुचित लगता है. एक खतरनाक सामरिक परिणाम यह है कि सैकड़ों भारतीय और चीनी सैनिक अब गलवान घाटी में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर एकत्र हो रहे हैं और तब तक तैनात रहेंगे, जब तक कि 'विघटन' दोनों पक्षों की सहमति से नहीं हो जाता. रणनीतिक रूप से, यह उस क्षेत्र पर चीन के नियंत्रण को मजबूत करता है क्योंकि जहां चीन ने अपना पड़ाव डाला है, वह जगह गलवान नदी और श्योक नदी का जंक्शन है, जिससे चीनी पीएलए को न केवल गलवान नदी पर कमांडिंग पोजिशन मिलती है बल्कि दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) राजमार्ग पर नियंत्रण का मौका मिल जाता है. इसके जरिए भारतीय सेना लद्दाख के दूसरे हिस्से में जा सकती है.

प्रश्न : एक बयान में ट्रंप ने भारत-चीन विवाद पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अमेरिका दोनों देशों के साथ संवाद कर रहा है. इस विवाद में अमेरिका या किसी अन्य देश की क्या भूमिका हो सकती है?

यह पूरी तरह से एक द्विपक्षीय मुद्दा है और तीसरे पक्ष को लाने से कोई लाभ नहीं हो सकता. वास्तव में, भारत और चीन दोनों ने स्पष्ट रूप से किसी भी मध्यस्थता से इनकार कर दिया है.

प्रश्न : एक आम सहमति है कि चीनी सैन्य शक्ति भारत की तुलना में अधिक मजबूत है. भारत को सीमा पर झड़पों से निबटने के लिए कैसे आगे बढ़ना चाहिए?

यह मेरा विषय नहीं है. इसपर मैं टिप्पणी नहीं कर सकती.

प्रश्न : विश्व बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरने के लिए चीनी बाजार पिछले 20 वर्षों में तेजी से बढ़ा है. क्या हालिया घटनाक्रम चीनी हितों के खिलाफ नहीं हैं?

गलवान की झड़प से चीन की वैश्विक आर्थिक हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. यह भारत-चीन आर्थिक रिश्तों पर कुछ समय के लिए प्रभाव डाल सकता है. लेकिन कोरोना महामारी के खिलाफ चीन जिस प्रकार पूरी दुनिया के अविश्वास का पात्र बना है, वह इसके खिलाफ जरूर जा सकता है.

प्रश्न : विश्व राजनीति में अमेरिका और चीन के बीच एक स्पष्ट विभाजन होता दिख रहा है, अगर यह एक और शीत युद्ध जैसी स्थिति बन जाती है तो भारत का रुख क्या होना चाहिए?

अब हम एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के गवाह बन रहे हैं. महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि भारत को किसी एक के साथ साइडिंग के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. यूएस और चीन, दोनों के साथ हमारे बहुत महत्वपूर्ण संबंध हैं. हमारा पड़ोसी, हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और सबसे तेजी से बढ़ते एफडीआई का स्रोत है. भारत के पास रणनीति है. यह भी सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका होगा कि हम अन्य खिलाड़ियों के रणनीतिक उद्देश्यों में उलझे बिना अपने राष्ट्रीय हित को सुरक्षित करने में सक्षम बनें.

प्रश्न : यह पूरा विवाद कोरोना महामारी को लेकर भारत और चीन की बढ़ती चिंताओं से किस प्रकार संबंधित है?

अभी जो झड़प भारत और चीन के बीच हुई है, उससे भारत और चीन ने कोरोना महामारी से लड़ने का एक सुनहरा मौका खो दिया. हमने भारत और चीन, दोनों देशों के बीच महामारी के शुरुआती चरणों में कुछ अत्यंत उपयोगी और सकारात्मक सहयोग देखे हैं. प्रत्येक ने समस्या से निबटने के लिए सामग्री, उपकरण और दवाएं एक-दूसरे को मुहैया कराईं. यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के लिए चीन पर हमारी निर्भरता है, जो लाखों भारतीयों के लिए जीवन रेखा है. चीन अब वास्तव में भारत के पड़ोसियों, विशेष रूप से बांग्लादेश और पाकिस्तान को मेडिकल टीम और सामग्री भेज रहा है. यदि दोनों देश अपनी व्यापक क्षमता, संसाधनों और अनुभव के साथ एक-दूसरे का सहयोग करते हैं तो परिदृश्य बदल सकता है.

Last Updated : Jun 30, 2020, 6:08 PM IST

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