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समग्र शिक्षा हासिल करने के लिए गांधीवादी रास्ता एक बेहतर विकल्प - indian independence movement

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 29वीं कड़ी.

गांधी की फाइल फोटो

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Published : Sep 14, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 1:16 PM IST

शिक्षा मानव जाति की उन्नति के एक प्रमुख माध्यम शुरू से ही रहा है. इसने मानव जाति की प्रारंभिक सभ्यताओं को अज्ञान की बाधाओं को पार करने में बड़ी भूमिका निभाई है. उन्हें आधुनिक समाज के रूप में तब्दील होने में मदद की. जिस प्रकार एक पेड़ की जड़ें फैल जाती हैं, उसी तरह से शिक्षा ने हमारे समाज के हर रूप में अपनी जगह बना ली है. पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपनी सामग्री और कार्यान्वयन में कई कमियों के कारण वर्तमान पीढ़ी को रोजगार प्रदान करने में असमर्थ है.

यही वजह है कि शिक्षा पर गांधी के विचार अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं. उन्होंने प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ संतृप्ति के पूर्वानुमान की सही भविष्यवाणी की थी. यह हमें एक चौराहे पर छोड़ दे रहा है. गांधी ने हमेशा समग्र शिक्षा की वकालत की थी. ऐसी शिक्षा जो तकनीकी ज्ञान और सॉफ्ट स्किल दोनों को शामिल करती है. उनका कहना था - 'शिक्षा से मेरा मतलब है कि एक बच्चे के अंदर उसका शरीर, मन और आत्मा तीनों का विकास हो. इसे सर्वांगीण विकास होता है.'

आजे के समय में एक छात्र उच्च अंक प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन वे उपयुक्त नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं. गांधी ने इस तथ्य पर जोर दिया कि शिक्षा को उद्यमियों को विकसित करना चाहिए, न कि कर्मचारियों को. दृढ़ता और धैर्य की गांधीवादी तकनीकें सफलता की असली किरण हैं. पर्याप्त परिश्रम के बिना त्वरित परिणाम के इच्छुक छात्रों को महात्मा गांधी को दृढ़ता के साथ मिश्रित दूरदर्शी के लिए एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में लेना चाहिए. उनका मानना ​​था कि शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है और इसे एक यात्रा के दौरान रेट्रोस्पेक्ट के साथ सम्मानित और प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए.

गांधी कहते थे कि छात्रों को जिज्ञासु होना चाहिए. उनके मन में सवाल उठने चाहिए. उनका मानना था कि ज्ञान और ज्ञान प्राप्ति के सच्चे आधार यही हैं. वे कहते थे कि निरंतर सवाल करने और स्वस्थ जिज्ञासा किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहली आवश्यकता है. यही शिक्षा के स्थायी आधार हैं.

गांधीजी ने आजादी हासिल करने के लिए साक्षरता को भी एक माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया था. उन्होंने अधिग्रहण उन्मुख तनाव-मुक्त संवादात्मक वातावरण पर ध्यान केंद्रित किया, जहां तर्क-वितर्क की सुविधा होती है.
गांधी ने महसूस किया कि शिक्षा केवल चार दीवारों तक सीमित नहीं होनी चाहिए. हमेशा व्यावहारिक सीख के लिए प्रयास करना चाहिए. उनका कहना था कि ज्ञान का मतलब पूरे शरीर में उसे आत्मसात करना. शरीर की सभी इंद्रियां उसे समान रूप से प्राप्त करे.

गांधी ने एथिकल लर्निंग की वकालत की थी. आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में इस अवधारणा को हमारे स्कूलों में लागू की गई है. सत्य और अहिंसा पर वे विशेष जोर देते थे. उनका मानना था कि शिक्षा में अनुशासन एक प्रमुख अवयव है. वे यह भी कहते थे कि शिक्षा भावना से जुड़ी होनी चाहिए. यह भावरहित ना हो. यही वजह थी कि उन्होंने इमोशनल लर्निंग पर जोर दिया.

गांधी का कहना था कि इंटेलिजेंस क्योशिएंट से ज्यादा महत्वपूर्ण है इमोशनल क्योंशिएंट. उन्होंने कहा कि शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए ऐसी ही शिक्षा बेहतर होगी. उसके लिए यह सबसे जरूरी उपकरण है. मानवीय भाईचारे के माध्यम से एकता को बढ़ावा दे सकते हैं. उनका कथन, 'नई-तालीम का कार्य व्यवसाय करने के लिए सिखाना नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से पूरे मनुष्य को विकसित करना है,' इसका उद्देश्य भावनात्मक शिक्षा का प्रसार करना है.

Last Updated : Sep 30, 2019, 1:16 PM IST

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