नफरत और हिंसा की भाषा लोगों को बांटती है, डर पैदा करती है, और बाद में इसके अराजक गुण पूरे समाज को निगल ले लेते हैं. भले ही लोग चरमपंथियों को आदर्श बनाकर, हिंसक उपायों से मोहित हुए हों, गांधी के साहित्य-शास्त्र की श्रेष्ठता के कारण ये धीरे-धीरे वापस भी लौटे.
लड़ाई-मतभिन्नता (Conflict) शुरुआत में भले ही जीत जाए, लेकिन अंत में शांति की ही जीत होती है. इसलिए, मानवीय और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए गांधीवादी संवाद हमेशा प्रासंगिक और अनिवार्य है. जनसाधारण के महात्मा, गांधी ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को प्रेरित किया, बल्कि संवाद की सीमाओं को भी दोबारा परिभाषित किया. मौखिक ढंग से अभिव्यक्त हो, या अनकहा; गांधी के संवाद की भाषा का वर्णन करने के लिए हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती.
आज के संदर्भ में गांधी
एक साधन के रूप में गांधी ने विविधता में एकता के लिए प्रेरक संवाद (persuasive communication) की वकालत की. ये उनके कथन से जाहिर होता है. गांधी ने कहा था, 'मुझे लगता है कि एक समय में नेतृत्व का मतलब बाहुबल था; लेकिन आज इसका मतलब है लोगों के साथ कामयाब होना.'
शब्दों से मार्गदर्शन
गांधी एक सच्चे वक्ता, सच्चे वक्ता और ईमानदार लेखक थे. उनकी अद्भुत सादगी, प्राकृतिक ईमानदारी, चमकदार स्थिरता के कारण गांधी के दूरदर्शिता (vision) का महत्व और बढ़ गया. गांधी ने पहला कदम हमेशा खुद उठाया. बात चाहे पत्रकार के रुप में उनके लेखों की हो, या नैतिकता से भरे उनके भाषणों की, गांधी के शब्दों ने उनके अनुयायियों का आजादी की ओर मार्गदर्शन किया.
तलवार से ज्यादा ताकतवर कलम
अहिंसा के अलग-अलग रास्तों में आगे रहने वाले अपने लोगों का नेतृत्व करने की खोज में, गांधी ने साबित कर दिया कि उनकी अहिंसक कलम हिंसक तलवार की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली थी. गांधी की कलम से न केवल लोगों को बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष को भी आवेग मिला. गांधी के शब्दों में उनकी दूरदर्शिता की झलक मिलती थी. इनमें अहिंसा का आग्रह था, जिससे गांधी पूरी मानवता के मसीहा बने.
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सीमाओं से परे गांधी का प्रभावी संवाद
हालांकि, गांधी एक शर्मीले (shy) वक्ता थे, उन्होंने ये माना कि ये उनकी संपत्ति थी. जैसा कि उन्होंने कहा था, 'भाषण में मेरी हिचकिचाहट, जो कभी एक खीज थी, अब एक खुशी है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है, कि इसने मुझे शब्दों की किफायत (economy) सिखाई है.' गांधी उनकी आवाज (cry) उठाना चाहते थे, जिन लोगों तक कोई नहीं पहुंचा. नेतृत्व की सहज प्रवृत्ति के कारण गांधी उन सीमाओं से परे गए जिसे कभी पार नहीं किया गया था. गांधी ने ऐसा प्रभावी संवाद के माध्यम से किया. सत्याग्रह पर गांधी के लेख के कारण प्रभावी संवाद कायम हुआ. गांधी ने अपने अनुयायियों के जरिए स्वराज के अहिंसक आक्रोश का कम प्रसार किया.
गांधी ने पीड़ा को बनाया मिशन
गांधी अपनी अंतरआत्मा, नैतिकता और अनुयायियों की सुनने वाले थे. गांधी (ऐसे रत्न) ऐसा चश्मा (prism) थे, जिनके संवाद की चमक के कारण हीरे की चमक भी फीकी पड़ जाए. गांधी एक प्रेरक निवेदन करने वाले आदमी थे. इसलिए जब-जब उनके अनुयायी गांधी की नैतिकता के दायरे में आए, उनमें शांति का अनुभव पैदा हुआ. गांधी एक परिवर्तनकारी उत्प्रेरक (catalyst) थे, जिसने अपने लोगों की पीड़ा को अपने मिशन में शामिल कर लिया.
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गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा !
चरखे पर सूत कातना, खादी पहनना, नमक कानून के खिलाफ दांडी मार्च, गांधी ने इन सबसे दुनिया को निस्तब्ध (stunned) कर दिया. गांधी की सादगी में उनकी दूरदर्शिता (vision) रोपित (planted) थी. गांधी ने ऐसा गैर शाब्दिक (non-verbal) शारीरिक भाषा के माध्यम से किया था. ऐसा कहा जाता है कि, उपदेश देने से पहले अभ्यास जरूरी होता है, लेकिन गांधी को उपदेश नहीं देने पड़े. ऐसा इसलिए क्योंकि गांधी की बातें उनके कर्म से प्रतिध्वनित (echoed) होती थी. गांधी के कर्म में लोगों की पीड़ा भी झलकती थी.