रायपुर : छत्तीसगढ़ के सरगुजा की अंबिकापुर जेल और कारावास का नाम सुनते ही अंधकारमय जीवन जेहन में आता है. कोर्ट में सश्रम कारावास की सजा सुनाने के बाद हिन्दी फिल्मों में दिखाए जाने वाले कैदियों की वही सफेद धारीदार वेशभूषा और हथौड़े से पत्थर तोड़ते कैदियों की प्रतीकात्मक छवि नजर आने लगती है, लेकिन जेल की असल जिंदगी कुछ और ही है, इससे हम आपको रूबरू कराएंगे.
ईटीवी भारत आपको बताएगा कि आज का सश्रम कारावास फिल्मों से कितना अलग है. अब न तो जेलर फिल्मों जैसे होते है और न ही कैदियों का श्रम वैसा होता है. बल्कि अंबिकापुर जेल के कैदियों की कलाकारी देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे.
जेल में अकुशल और कुशल कैदी की कैटेगरी
किसी न किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले कैदियों के हाथ इतने कुशल और प्रशिक्षित हैं, जो न सिर्फ अपने लिए आमदनी कर रहे हैं बल्कि आमदनी का बराबर का हिस्सा उस परिवार के लिए भी कमा रहे हैं, जिसके साथ अपराध को अंजाम देने के बाद उन्हें जेल की सजा मिली है. जेल में कैदी जो काम करता है, उसमें अकुशल कैदी को हर रोज 60 रुपये मिलता है. इसमें से 30 रुपये उस कैदी को मिलता है और 30 रुपये विक्टिम को दिया जाता है जबकि कुशल कैदी को 75 रुपये मिलता है और इसका भी आधा पैसा विक्टिम के घर पहुंचता है.
कैदियों ने लॉकडाउन में बढ़ाया उत्पादन
कोरोना महामारी के बाद पूरा देश लॉकडाउन हो गया था और इस वजह से उत्पादन बंद होने से सभी का व्यापार प्रभावित हुआ, जिससे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. लेकिन उस स्थान के बारे में जरा सोचिए, जो हमेशा ही लॉकडाउन में रहती हो. भला वहां लॉकडाउन का कोई अलग असर कैसे हो सकता है, लिहाजा अंबिकापुर सेंट्रल जेल में कैदियों की उत्पादन क्षमता में कोई कमी नहीं आई बल्कि लॉकडाउन के कारण जेल में मुलाकात बंद होने और ज्यादा समय मिलने के कारण उन्होंने ज्यादा काम किया, जिससे उनका उत्पादन भी बढ़ गया. कैदियों को हर साल 24 लाख का पारिश्रमिक दिया जाता है. इसका आधा यानी 12 लाख रुपये पीड़ित पक्ष को जाता है. एक साल में 25 लाख की लागत और 36 लाख की बिक्री कर 11 लाख रुपये कैदियों ने कमाए हैं.
जेल में 10 इंडस्ट्री
जेल अधीक्षक राजेंद्र गायकवाड़ बताते हैं कि जेल में 10 इंडस्ट्री चल रही है. जिसमें सिलाई के काम के लिए 32 सिलाई मशीनें हैं. इन मशीनों को 25 पुरुष और सात महिलाएं चलाती हैं. जेल में होमगार्ड्स के यूनिफार्म 150 रुपये में सिले जाते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत 800 रुपये है और यही वजह है कि होमगार्ड की यूनिफॉर्म रायपुर से सिलने अंबिकापुर आती है.
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कैदियों ने बनाए 80 हजार मास्क
कोरोना महामारी को दूर भगाने के लिए अंबिकापुर केंद्रीय जेल के कैदियों ने भी वॉरियर्स की भूमिका निभाई. लॉकडाउन में कैदियों ने करीब 80 हजार मास्क तैयार किए, जिनमें ज्यादातर मास्क जेल में तैयार किए गए खादी के कपड़े से ही बनाए गए हैं. मास्क की कीमत सात रुपये निर्धारित की गई है. वहीं कैदी रुमाल और मास्क में गोदना आर्ट के जरिए मास्क को एक विशेष पहचान चिह्न बना रहे हैं, जिसकी मांग छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि बाहर भी है.