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एक नजर इधर भी...जब पुलिस और वकीलों की भिड़ंत हुई - बेंगलुरु सिविल कोर्ट

राष्ट्रीय राजधानी में गत दो नवम्बर को तीस हजारी कोर्ट परिसर में पुलिस और वकीलों के बीच हुई झड़प ने मंगलवार को वृहद रूप ले लिया. इस क्रम में खुद पर हुए हमलों के खिलाफ दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया. इसी तरह की कुछ घटनाएं पिछले कुछ सालों में देखने को मिली हैं, जब वकीलों की पुलिस और मीडियाकर्मियों के साथ हिंसक झड़पें हुईं. पढ़ें ऐसी ही खबरों का सिलसिलेवार ब्यौरा...

मामले जहां पुलिस और वकीलों की भिड़ंत हुई

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Published : Nov 6, 2019, 12:03 AM IST

नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी में तीस हजारी जिला अदालत के बाहर पिछले हफ्ते वकीलों और दिल्ली पुलिस के एक समूह के बीच मामूली सी हाथापाई एक बड़े विवाद में बदल गई.

गौरतलब है कि दोनों पक्षों की ओर से जमकर विरोध और प्रदर्शन हुए. रोष बड़े विरोध में बदल गया.

देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में प्रमुख रूप से सामने आई हैं.आइए, डालते हैं उनपर एक नजर...

घटनाएं, जहां पुलिस और वकीलों के बीच झड़प हुई

मदुरै, फरवरी 2009
मद्रास उच्च न्यायालय में एक नाराज वकील और एक पुलिस अधिकारी के बीच बहस शुरू हुई, जो जल्द ही हिंसक झड़पों में बदल गई. 50 से अधिक वकील और उच्च न्यायालय के एक सिटिंग जज, 20 पुलिसकर्मी, दर्जनों दर्शक और दो पत्रकार घायल हो गए थे. स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया.

पुलिसकर्मियों और वकीलों को अदालत परिसर के अंदर खड़ी निजी वाहनों की विंडस्क्रीन तोड़ते हुए दिखाया गया.

आपको बता दें कि पुलिस ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों ने 12 सरकारी बसों को क्षतिग्रस्त कर दिया.

बेंगलुरु, मार्च 2012
बेंगलुरु सिविल कोर्ट में वकीलों ने मीडिया और पुलिस दलों पर हमला किया. उत्तेजित वकीलों ने घंटों तक पथराव किया और पुलिस वाहन को आग लगा दी. वकील नाराज थे कि मीडिया ने उन्हें गलत तरीके से दिखाया, जब उन्होंने इस साल की शुरुआत में एक सड़क नाकाबंदी आंदोलन शुरू किया था.

इलाहाबाद, 2015
राष्ट्रीय राजधानी के तीस हजारी कोर्ट में दो नवंबर को पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच हुई झड़प ने इलाहाबाद में मार्च 2015 में पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच हुई झड़पों की याद दिला दी.

पुलिस की गोली लगने से एक वकील की मौत के बाद दोनों पक्षों के बीच झड़प हुई थी. इस घटना में कई पुलिसकर्मी और वकील घायल हो गए थे और अनेक वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था.

घटना की शुरुआत उस वक्त हुई जब एक आरोपी को अदालत में पेश करने के लिए ले जाया जा रहा था और उसने वहां से भागने का प्रयास किया. उसे रोकने के लिए एक पुलिसकर्मी ने गोली चलाई जो एक वकील को जा लगी. बाद में वकील की मौत हो गई थी. खबर फैलने पर वकीलों ने पथराव किया था.

चेन्नै, फरवरी 2009
फरवरी 2009 में भी देश ने पुलिसकर्मियों और वकीलों के एक वर्ग के बीच उस वक्त झड़प देखी, जब पुलिसकर्मियों ने तत्कालीन जनता पार्टी प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी पर कथित तौर पर हमला करने वाले वकीलों को पकड़ने की कोशिश की थी.

स्वामी 17 फरवरी 2009 में मद्रास उच्च न्यायालय में जब एक मामले की पैरवी कर रहे थे, तब उन पर अंडे फेंके गए थे.

तीस हजारी अदालत उस वक्त भी सुर्खियों में आयी थी, जब पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने 1988 में प्रदर्शन कर रहे वकीलों पर लाठियां चलाने का आदेश दिया था.

बेदी उस वक्त दिल्ली पुलिस उपायुक्त थीं. ये वकील कथित तौर पर चोरी के मामले में एक वकील की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे.

इसके अलावा इस वर्ष जनवरी में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में वकीलों और पुलिसकर्मियों के बीच भी झड़पें हुई थीं.

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