हैदराबाद :वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर में एंटीबॉडी की उपस्थिति SARS-CoV-2 वायरस के होने के पिछले प्रभाव के बारे में बताती है. यानि कि व्यक्ति पहले भी SARS-CoV-2 से संक्रमित हो चुका है ये बताती है, लेकिन रोग से लड़ने की शक्ति भी पैदा करती है. इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता.
जैसा कि सोमवार को भारत में 90,062 मामले सामने आए हैं. वैज्ञानिक एंटीबॉडी मुद्दे पर समझ बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे रोग पर कैसे प्रभाव डालते हैं. अभी तक इसपर सहमति नहीं बन सकी है कि शरीर में एंटीबॉडी की उपस्थिति रोग से लड़ने में कितनी मदद कर सकती है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि केवल एक चीज जो निश्चित तौर पर कही जा सकती है, वह ये कि एंटीबॉडी एक संकेत है कि व्यक्ति वायरस से संक्रमित हो चुका है. इम्यूनोलॉजिस्ट सत्यजीत रथ ने कहा कि इस बारे में वो परिणाम का इंतजार करना पसंद करेंगे.
पुणे के भारतीय विज्ञान संस्थान, शिक्षा और अनुसंधान (IISER) से विनीता बल ने कहा कि शरीर में दो प्रकार की प्रतिरोधी क्षमता है. एक सामान्य एंटीबॉडी और दूसरी न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी (एनएबीएस). एनएबीएस शरीर में कोरोना वायरस के प्रवेश को रोकते हैं वहीं सामान्य एंटीबॉडी भी वायरस के खिलाफ ही काम करते हैं लेकिन, साधारण एंटीबॉडी वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बहुत हद तक उपयोगी नहीं हैं.
एंटीबॉडी की उपस्थिति SARS-CoV2 के पहले हो चुके होने का स्पष्ट संकेत है, लेकिन जरूरी नहीं कि यह रोग से लड़ने में सुरक्षा की गारंटी हो.
विनीता बल ने कहा कि पर्याप्त मात्रा में लंबे समय तक के लिए एनएबीएस की उपस्थिति से किसी भी बीमारी या कोरोना वायरस से संरक्षण की संभावना है मगर अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता.
बल ने यह भी कहा कि अभी इसपर पूरी सहमति नहीं है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एनएबीएस किस हद तक सुरक्षात्मक है या प्लाज्मा थेरेपी में उपयोगी हो सकता है.
पिछले कुछ महीनों में भारत में अलग-अलग सीरो-सर्वेक्षण किए गए हैं. देश में संक्रमित मामलों की वास्तविक संख्या का पता लगाने का उद्देश्य से. एक सीरो-सर्वेक्षण में ब्लड सीरम का परीक्षण किया जाता है ताकि यह पता चल सके कि अतीत में कौन संक्रमित हुआ है और अब ठीक हो गया है.