नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में होने वाली इन्वेस्टर्स समिट को स्थगित कर दिया गया है. अब इसे साल 2020 तक के लिए टाल दिया गया. इसपर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि घाटी में अभी भी स्थिति अनुकूल नहीं हुई है, इसलिए सरकार के लिए यह संभव नहीं है की वहां इन्वेस्टर्स समिट कराए जाएं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए राजनीतिक जानकार सुरेश बाफना ने कहा की जम्मू-कश्मीर में अभी भी इंटरनेट और संचार की सेवा सुचारू रूप से चालू नहीं हुई हैं. ऐसे में वहां इस तरह की कोई समिट करा पाना सरकार के लिये संभव नहीं है. उन्होंने कहा की घाटी में अभी हालात पहले की तरह नहीं हैं और यही वास्तविकता है.
राजनीतिक जानकार से ईटीवी भारत की बातचीत. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला को जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया है. इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार का उन्हे इस तरह नजर बंद करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के पक्ष में थे, लेकिन इसके बावजूद भी फारूक अब्दुल्ला को इतने दिनों के लिए घर में कैद करना गलत है.
सुरेश बाफना ने कहा कि सरकार को फारूक अब्दुल्ला से बातचीत करके रास्ता निकालना चाहिए. साथ ही उन्हें वहां के लोगों के बीच में बोलने की आजादी होनी चाहिए ताकी वहां पर एक बार फिर से राजनीतिक प्रक्रिया शुरु हो सके. भले ही सरकार को विरोध का सामना करना पड़े. हालांकि, सरकार को इस बीच यह भी ध्यान देना होगा की वहां किसी भी तरह की हिंसा न पैदा हो.
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के आगामी उच्चस्तरीय सत्र में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतानियो गुतारेस द्वारा कश्मीर का मुद्दा उठाए जाने की संभावना पर बोलते हुए सुरेश बाफना ने कहा कि वहां पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने पर किसी भी तरह की बात नहीं होगी. हालांकि, वहां से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद वहां के लोगों को जो परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसपर बात होने की संभावना है.
उनहोंने कहा की जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिये मानवाधिकार का मुद्दा भारत में भी उठाया जा और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अगर यह बात उठाई जाती है तो भारत के लिये इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है.