पटना : देश की राजनीति में अपने मनोरंजक और चुटीले बयानों के साथ राजनीति की अलग लकीर खींचने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं. लोगों की सियासी नब्ज की पहचान रखने वाले राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव 2019 के पूरे सीन से गायब थे, जिसका खामियाजा उनके दल को भी उठाना पड़ा.
केंद्र में कभी 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाले लालू आज उस बिहार से करीब 350 किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं, जहां उनकी खनक सियासी गलियारे से लेकर गांव के गरीब तक में सुनाई देती थी.
गरीबों के नेता के रूप में उभरे लालू
बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले संतोष सिंह की चर्चित पुस्तक 'रूल्ड ऑर मिसरूल्ड द स्टोर एंड डेस्टीनी ऑफ बिहार' में कहा गया है कि बिहार में 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद लालू प्रसाद ने उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेता के रूप में पहचान बनाई और इसमें उन्होंने काफी सफलता भी पाई. सिंह कहते हैं कि उन्होंने गरीबों के बीच जाकर खास पहचान बनाई और गरीबों के नेता के रूप में खुद को स्थापित किया.
1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे
इससे पहले बिहार में जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन हो रहा था, तो लालू ने सक्रिय छात्र नेता के तौर पर उसमें भाग लेकर अपनी राजनीति का आगाज किया था. आंदोलन के बाद हुए चुनाव में लालू यादव को जनता पार्टी से टिकट मिला और वह 1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे. सांसद बनने के बाद लालू का कद राजनीति में बड़ा होने लगा और वह साल 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.
1997 में आरजेडी का गठन
साल 1997 में जनता दल से अलग होकर उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. इस दौरान लालू के विश्वासपात्र और बड़े नेता उनका साथ छोड़ते रहे. आरजेडी ने 1998 के लोकसभा चुनाव में 17 लोकसभा सीटें जीतीं. इसके बाद आरजेडी ने साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. हालांकि, फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल 75 सीटें जीत सकी और सत्ता से बाहर हो गई.
सुशासन और विकास का गठजोड़
किताब में कहा गया है कि 'भागलपुर दंगे के बाद मुस्लिम मतदाता जहां कांग्रेस से बिदककर आरजेडी की ओर बढ़ गए, वहीं यादव मतदाताओं ने स्वजातीय लालू को अपना नेता मान लिया.' इस बीच, नीतीश कुमार ने भी नए 'सोशल इंजीनियरिंग' का तानाबाना बुनकर उसमें सुशासन और विकास को जोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर बिहार की सत्ता से लालू को उखाड़ फेंका.
किंगमेकर की भूमिका में लालू
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 'लालू प्रसाद का वह स्वर्णिम काल था. इस समय में वह किंगमेकर तक की भूमिका में आ गए थे. हालांकि 1997 में चारा घोटाला मामले में आरोपपत्र दाखिल हुआ और 2013 में लालू को जेल भेज दिया गया. उसके बाद उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई. इसके बाद बिहार के लोगों को विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार मिल गए. जब मतदाता को स्वच्छ छवि का विकल्प उपलब्ध हुआ तो मतदाता उस ओर खिसक गए.'