हैदराबाद: सोशल मीडिया ने एक तरफ जहां लोगों को जोड़ा है, वहीं इन प्लेटफॉर्मों पर फर्जी खबरें भी खूब पनपी हैं. हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से जवाब मांगा कि उसने फर्जी समाचारों/जानकारियों से निपटने के लिए कौन सा तंत्र तैयार किया है.
यह बात किसी से नहीं छुपी है कि फर्जी खबरों के कारण कई लोगों की जान जा चुकी है. आइये एक नजर डालते हैं कि किन देशों में इसको लेकर कानून हैं और हमारा देश उनसे क्या सीख सकता है.
फ्रांस
1881 के प्रेस की स्वतंत्रता कानून के मुताबिक फ्रांस में समाज में अशांति फैलाने के उद्देश्य से फर्जी समाचार प्रकाशित और प्रसारित करना गैर कानूनी है.
यह कानून नवंबर 2019 में पारित हुआ था. इसमें फर्जी समाचार को परिभाषित किया गया है. फर्जी समाचार वह है जिसमें गलत आरोप, तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने वाले समाचार, जिनका उद्देश्य मतों को प्रभावित करना है. इसको चुनाव के दौरान मडिया की कवरेज (खासकर चुनाव के तीन माह पहले की कवरेज) पर सख्त कानून लागू करने लिए बनाया गया है.
इसके तहत प्राधिकारियों के पास अधिकार होते हैं कि वह सोशल मीडिया द्वारा फैलाए गए किसी भी फर्जी समाचार को हटा सके. यही नहीं वह फर्जी समाचार प्रकाशित करने वाली साइट को ब्लॉक भी कर सकते हैं. इसके तहत प्रायोजित सामग्री के लिए किए गए वित्तीय लेनदेन में भी पारदर्शिता लाई गई है.
इसके अलावा इस कानून में प्रावधान हैं कि वह फ्रांस में चल रहे टीवी और रेडियो चैनलों के प्रसारण के अधिकारों को भी रद्द कर सकते हैं.
सिंगापुर
मई 2019 में सिंगापुर में ऑनलाइन फर्जी सूचना को प्रसारित करने को गैरकानूनी बनाने के लिए कानून लाया गया था. इसके तहत सिंगापुर की सुरक्षा और लोगों की सुरक्षा पर खतरा पैदा करने वाले, सामाजिक अशांति फैलाने वाले और अन्य देशों के साथ रिश्तों को प्रभावित करने वाले फर्जी समाचारों का प्रकाशन गैरकानूनी है. दोषियों पर भारी फाइन लगाया जाता है और उन्हें जेल तक हो सकती है.
यूनाइटेड किंगडम
फर्जी समाचार की समस्या के निदान पर विचार करने के बाद संसद की डिजिटल, संस्कृति, मीडिया और खेल समिति ने 2018 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इसके तहत ऑनलाइन समाचारों पर भी पारंपरिक मीडिया के नियम लागू होंगे. इसके अलावा रिपोर्ट में एक समूह के गठन का सुझाव दिया गया था, जो फर्जी समाचार कैसे फैलता है, इसपर शोध करेगा.
इसके अलावा ब्रिटेन की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कि एक संचार इकाई भी स्थापित की है. इसका कार्य देश के भीतर या बाहर से आ रहे फर्जी जानकारी या समाचार से निपटना है. यह निर्णय उस समय लिया गया था जब रूस द्वारा फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट के माध्यम से ब्रेक्सिट जनमत संग्रह के बारे में फर्जी जानकारी फैलाए जाने की जांच हो रही थी.
स्वीडेन
स्वीडेन में संगठनों द्वारा इसे स्व-विनियमित करने और नैतिक मूल्यों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
जर्मनी
जर्मनी में 2017 में नेटवर्क प्रवर्तन अधिनियम लागू किया गया था. इसके तहत सोशल मीडिया को लेकर कोई नई नीति नहीं बनाई गई है. हालांकि, मौजूदा कानूनों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाता है. इसके अलावा यह गैरकानूनी कटेंट को हटाने और उस मामले में जांच के अधिकार भी देता है.
कनाडा
2019 में सरकार ने एक डिजिटल चार्टर की घोषणा की थी. इसमें कहा गया था कि कनाडा सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगी और चुनावों और लोकतांत्रिक संस्थानों की अखंडता को खतरे में डालने वाले ऑनलाइन खतरों और विघटन से रक्षा करेगी.