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शिकारी और पूर्व विद्रोही बने जंगली जानवरों के तारणहार - tiger

मानस नेशनल पार्क को कभी यूनेस्को ने खतरे का टैग दिया था. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. टैग हट चुका है. शिकारी और विद्रोही मिलकर यहां जानवर की रक्षा कर रहे हैं. यह बदलाव के संकेत हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

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Published : May 10, 2019, 12:04 AM IST

Updated : May 10, 2019, 1:06 PM IST

नई दिल्ली/गुवाहाटी: असम के मानस नेशनल पार्क में अब जंगली जानवरों को संरक्षण मिल रहा है. आश्चर्य की बात यह है जो लोग कभी इनका शिकार करते थे वही आज इन जानवरों के तारणहार बन गए हैं.

मानस नेशनल पार्क में कायपलट हुई है.

असम में भारत-भूटान सीमा से सटे मानस नेशनल पार्क एक दशक से अधिक समय तक नागरिक अशांति का गवाह रहा है. इतना ही नहीं इसे यूनेस्को द्वारा इस विरासत स्थल को खतरे के रूप में टैग किया गया था. लेकिन अब यह पुनर्जिवित हो रहा है.

मानस नेशनल पार्क ने कभी अशांति देखी थी, लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है. अब यहां से यूनेस्को ने खतरे का टैग को हटा लिया है. मानस नेशनल पार्क और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) की अवधारणा के साथ-साथ इसकी भी अवधारणा की गई है. इसे असम वन विभाग ने स्वागत किया है. इस बात की जानकारी भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (डब्ल्यूटीआई) के उप निदेशक समीर कुमार सिन्हा ने दी.

सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान में 350 वर्ग मीटर का अतिरिक्त क्षेत्र को जोड़ा गया है. यहां के स्थानीय लोग (अधिकांश पहले शिकारी और विद्रोही थे) भी राष्ट्रीय उ्दयान में जानवरों की रक्षा के लिए आगे आए हैं. इसका नतीजा काफी सुखद रहा. सिन्हा ने आगे बताया कि पिछले साल के सर्वेक्षण में उन्होंने पाया कि जो प्रजातियां लुप्त हो गईं थी वे अब फिर से वापस मिलने लगी है. इसको देखते हुए अब हमें आवास को बेहतर बनाने का आवश्यकता है.

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बता दें कि मानस नेशनल पार्क असम में स्थित है और यहां प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व, हाथी रिजर्व और बायोस्फेयर रिजर्व है. बताते चले कि पिछले 80 के दशक में जब असम विद्रोह की चपेट में था उस वक्त एक सींग वाले गैंडे, बाघ सहित कई जंगली जानवर को सशस्त्र विद्रोहियों और शिकारियों ने मार डाला था. लेकिन अब काले बादल छंट चुके हैं और मानस नेशनल पार्क में सुरज का नया सवेरा होने को है.

Last Updated : May 10, 2019, 1:06 PM IST

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