ब्रिक्स की बैठक से इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज रात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे. यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले सप्ताह ही भारत ने आरईसीपी के क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉक में शामिल होने से इनकार कर दिया था.
करीब एक महीने पहले ही दोनों नेताओं की चेन्नई के ममल्लापुरम में मुलाकात हुई थी. भारत के घरेलू व्यापारिक समुदाय ने आरईसीपी का घोर विरोध किया था. उनकी दलील थी कि इस समझौते के बाद भारतीय बाजार चीन के सस्ते सामान से पट जाएंगे. चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा 50 अरब डॉलर का है.
तमिलनाडु में दोनों नेताओं की बैठक के बीच यह तय हुआ था कि भारत के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और चीन के उप राष्ट्रपति हु चुन्हू व्यापार और निवेश के मुद्दे और व्यापारिक घाटा को खत्म करने के लिए मुलाकात करेंगे.
वैसे, ब्राजीलिया में पीएम मोदी के लिए कश्मीर मुद्दा भी काफी अहम है. तमिलनाडु में भारत और चीन के बीच कश्मीर का मुद्दा उठा नहीं था. फिर भी सुरक्षा परिषद में चीन ने जिस तरीके से अपने दोस्त का समर्थन किया, वह भारत के लिए चिंता का सबब जरूर है.
एक दिन बाद यानि 14 नवंबर को यूएस कांग्रेस की बैठक में कश्मीर पर चर्चा होने वाली है. इसी प्रकार से द टॉम लैंटॉस ह्यूमन राइट्स कमीशन भी कश्मीर में मानवाधिकार के मुद्दे पर बहस करेगा. वह इसे ऐतिहासिक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के मद्देनजर इसपर चर्चा करेगा. कमेटी का निर्माण लैंटॉस परिवार ने किया था. इसका नेतृत्व रिपब्लिकन नेता क्रिस स्मिथ और डेमोक्रेट नेता जिम मैकगोवर्न कर रहे हैं.
2014-15 में इस कमीशन ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर सुनवाई की थी. कुछ लोगों के बयान भी दर्ज किए थे. इसके अनुसार 31 अक्टूबर 2019 से भारत के मुस्लिम बाहुल्य राज्य जम्मू-कश्मीर की कानूनी स्थिति बदल गई. इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. उनके अनुसार इसकी वजह है मानवाधिकार हनन. बोलने की आजादी पर पाबंदी.
कई नेताओं, वकीलो, पत्रकारों और सिविल सोसाइटी के प्रमुख सदस्यों का हिरासत में लिया जाना. हिरासत में लिए जाने के बाद गायब होने की आशंका. विरोध करने वालों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई. पूरे क्षेत्र में अत्यधिक सैन्य उपस्थिति, इंटरनेट और फोन पर रोक तथा केन्द्र सरकार के द्वारा उठाए गए कदमों से पड़े रहे आर्थिक और सामाजिक प्रभाव से लोगों की चिंताएं बढ़ी हैं. इसके अलावा उग्रवादियों ने बाहर से आए हुए मजदूरों को निशाना बनाया है. वे व्यवसायियों पर दबाव डालते हैं. यह चिंता का विषय है.
संस्था की ओर से जारी प्रेस वार्ता में कहा गया है कि वे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और भारत-पाक के बीच हो रहे अधिकारों के हनन के आलोक में इसकी जांच करेंगे. इसके बाद कार्रवाई को लेकर अनुशंसा की जाएगी.