नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई. इस याचिका में सरकार के उस फैसले को गैर-कानूनी बताया गया है, जिसमें सरकार ने लॉकडाउन के दौरान सभी निजी प्रतिष्ठानों को श्रमिकों को मजदूरी का पूरा भुगतान करने का आदेश दिया था. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य जनहित याचिका दायर हुई. इसमें केंद्र सरकार से कोरोना महामारी के दौरान धर्म और जाति के आधार पर फैल रही नफरत के खिलाफ सख्त कदम उठाने और निर्देश देने की मांग की गई है.
लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों को मजदूरी का पूरा भुगतान
याचिकाकर्ता ने सरकार के इस फैसले को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी), 265 और 300-ए का उल्लंघन बताया है. यह जनहित याचिका लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन द्वारा दायर की गई है.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि आपदा के दौरान नियोक्ताओं द्वारा मजदूरी का भुगतान जारी रखा जाए. और ऐसे कोई कानून नहीं है कि जो काम न करने के बावजूद पूरी मजदूरी का भुगतान करने के लिए बाध्य करता हो.
याचिका में कहा गया है कि इस तरह का कोई भी आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
याचिकाकर्ता कह कहना है कि भुगतान काम होने पर ही दिया जाना चाहिए. आगे याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सभी निजी प्रतिष्ठान एक जैसे नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि कर्ज और भारी नुकसान झेल रहे प्रतिष्ठान श्रमिकों का भुगतान नहीं कर सकता है.
याचिकाकर्ता ने सरकार पर भेदभाव करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने बिना विचार-विमर्श किए नियोक्ताओं पर यह आदेश पारित कर दिया है.