भुवनेश्वर : कोरोना महामारी का प्रकोप पूरे विश्व में है, जिसके चलते मरीजों और संदिग्धों को 14 दिन के लिएएकांतवास किया जा रहा है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हिंदू संस्कृति में सदियों से भगवान को 14 दिन के लिए एकांतवास किए जाने की परंपरा रही है. दरअसल, मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर परिसर में 108 घड़ों के सुगंधित जल से पवित्र स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों के सामने हाथी के भेष में आते हैं, जिसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है. बुखार के कारण भगवान को पूरे शरीर में दर्द होता है. इसके बाद भगवान को सीधे जगमोहन के एकांत कमरे ले जाया जाता है. यहां दैत सेवक उनकी सेवा करते हैं और और 14 दिनों तक भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है.
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को आषाढ़ माह की अमावस्या पर अगले पखवाड़े के लिए एकांत में भेज दिया जाता है. इस अवधि के दौरान चतुर्दशी मूर्ति (यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बालभद्र, बहन देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन) को देखने की मनाही होती है. इस दौरान रत्न सिंहासन पर भगवान की फोटो रखकर उनके पृथ्वी पर दस अवतारों की पूजा की जाती है, जिसे 'रत्न सिंहासन' के नाम से जाना जाता है.
एकांत कमरा जहां दैत सेवक भगवान का गुप्त उपचार करते हैं, वह कालाहाट द्वार और सबसे भीतरी लकड़ी की दीवार के बीच स्थित है. पाती महापात्रा (एक सेवक) और दैत सेवक शाही चिकित्सक की सलाह के बाद मंदिर परिसर के एकांत कमरे में छिपे आसन बल्लभ पिंडी भगवान की सेवा करते हैं.
एक सेवक ने बताया कि भगवान के 14 दिन के उपचार के दौरान उनके लिए 10 जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाया जाता है और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दौरान भगवान को केवल फल, औषधीय जड़ी-बूटी और काढ़ा चढ़ाया जाता है और सभी अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं.