कोलकाता : केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इनमें से कुछ दवाएं चाय बागानों में भी प्रयोग की जाती हैं. हालांकि, पश्चिम बंगाल खासकर, दार्जिलिंग क्षेत्र में जैविक तरीके से चाय की खेती की जा रही है. पहाड़ी और तराई क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम किया जा रहा है. बागान मालिकों का कहना है कि हम सिर्फ उन्हीं कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, जो सरकार द्वारा प्रमाणित हैं.
सुकना टी गार्डन के प्रबंधक भास्कर चक्रवर्ती ने कहा कि चाय की फसलों को सूक्ष्म कीटों और फंगल से नुकसान होता है. फसलों को इन कीटनाशकों से बचाने के लिए हम पीपीसी के तहत चाय बोर्ड के सूचीबद्ध कीटनाशक और माइटीसाइड का उपयोग करते हैं.
दागापुर चाय बागान के प्रबंधक संदीप घोष कहते हैं कि छोटे किसान भी अब शिक्षित हो गए हैं. किसी भी रासायनिक या कीटनाशक का उपयोग करने से पहले वह विशेषज्ञों से परामर्श लेते हैं.
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय और टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने चाय बागानों में कीटनाशकों के उपयोग को लेकर सख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं. बोर्ड ने भारत में टी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के लिए टीम बनाई है, जिसमें पूर्वोत्तर भारत के लिए टी रिसर्च एसोसिएशन और दक्षिण भारत के लिए यूपीएसएआई (यूपीएसएआई) टी रिसर्च फाउंडेशन के साथ मिलकर एक चाय प्लांट प्रोटेक्शन कोड तैयार किया है.
इंडियन टी प्लांटर्स एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार अमृतांशु चक्रवर्ती ने कहा कि चाय बागानों में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों और रसायनों को टी रिसर्च एसोसिएशन (टीईए) और टी बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जो चाय की गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करता.
उन्होंने बताया कि बेहतर गुणवत्ता वाली चाय से हमें बेहतर कीमत मिलती है. इसके लिए हम चाय बागानों में केवल सरकार द्वारा सुझाए गए रसायनों का उपयोग करते हैं.