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संसदीय स्थायी समिति को स्मार्ट सिटी मिशन में मिली लापरवाही

शहरी विकास के मामलों को देखने के लिए बनी संसदीय स्थायी समिति को पूरे भारत में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही और अनियमितताएं मिलीं हैं. वहीं समिति ने सूरत और इंदौर में स्मार्ट शहरों के लिए किए गए अच्छे काम को लेकर इनकी सराहना भी की.

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Published : Oct 12, 2020, 10:31 PM IST

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नई दिल्ली : शहरी विकास के मामलों को देखने के लिए बनी संसदीय स्थायी समिति को पूरे भारत में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही और अनियमितताएं मिलीं हैं. भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 100 स्मार्ट सिटी मिशन की परियोजना में लगातार बदलाव देखने को मिले हैं. जयपुर स्मार्ट सिटी में परियोजनाएं बदलती रहती हैं. श्रीनगर और जम्मू में स्मार्ट शहर के लिए कोई सार्थक काम नहीं हुआ. पटना में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में अनियमितता मिली है.

औरंगाबाद, रायपुर और पटना में कोई प्रगति नहीं हुई

संसदीय स्थायी समिति को जांच में यह भी पता चला है कि औरंगाबाद, रायपुर और पटना में स्मार्ट सिटी के काम में कोई प्रगति नहीं हुई है. समिति को लगता है कि अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता है. समिति ने सूरत और इंदौर में स्मार्ट शहरों के लिए किए गए अच्छे काम की सराहना की. समिति ने कहा कि इंदौर में 'गाय की रोटी एटीएम' और 'नेकी की दीवार' जैसी नवीन परियोजनाओं को अन्य जगहों पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सिस्टर सिटीज में शीर्ष 20 शहरों को निचले 20 शहरों के साथ जोड़ा गया

आवास और शहरी विकास मंत्रालय ने संसदीय स्थायी समिति को सूचित किया कि मंत्रालय स्मार्ट सिटी मिशन की प्रगति और प्रदर्शन पर कड़ी नजर रख रहा है. मंत्रालय ने जानकारी दी कि सिस्टर सिटीज की अवधारणा शुरू की गई है. सिस्टर सिटीज में शीर्ष 20 शहरों को निचले 20 शहरों के साथ जोड़ा गया है. उदाहरण के लिए सूरत और इंदौर को क्रमशः सहारनपुर और गुवाहाटी की मदद करने के लिए जोड़ा गया है. इन शीर्ष शहरों को सामान्य मंच पर ज्ञान साझा करने से अन्य शहरों को बेहतर प्रदर्शन करने और इन शहरों की सफलता की कहानियों से सीखने और दोहराने में मदद मिलती है.

कुल 2,05,018 करोड़ रुपये की परियोजना

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कार्यान्वित होने वाली प्रस्तावित कुल 2,05,018 करोड़ रुपये की परियोजनाओं में से केवल 45 प्रतिशत बजटीय स्रोतों (केंद्रीय और राज्यों / केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा 50:50 योगदान) से वित्त पोषित है. 21 प्रतिशत निजी क्षेत्र साझेदारी (पीपीपी), 21 प्रतिशत फ्रेम अभिसरण और 13 प्रतिशत दूसरों से (ऋण, नगरपालिका बांड, स्वयं के संसाधन आदि) से है. स्मार्ट सिटी मिशन के तहत समग्र शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है.

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