नई दिल्ली : एक संसदीय समिति अगले सप्ताह चीन समेत पड़ोसी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय जल संधि की समीक्षा करेगी. जून में पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. इसके बाद से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हैं. समिति साथ ही पाकिस्तान, नेपाल और भूटान के साथ इसी तरह की संधि से जुड़े जल संसाधन प्रबंधन और भारत में बाढ़ प्रबंधन पर भी चर्चा करेगी.
बदलाव की जरूरत होगी, तो सलाह देगी
जल संसाधन संबंधी संसदीय स्थायी समिति मंगलवार को अपनी बैठक आयोजित करने के लिए तैयार है. इसमें जल शक्ति मंत्रालय (जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प विभाग) और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों द्वारा 'मौखिक साक्ष्य' उपलब्ध कराए जाएंगे. इस पहल से अवगत संसद सूत्र ने कहा कि समिति दो मंत्रियों के मौखिक प्रस्तुतियों के आधार पर मुद्दों को उठाएगी और अगर कुछ बदलाव की जरूरत होगी, तो इसके लिए सलाह देगी.
बैठक मंगलवार को दोपहर 2 बजे से
समिति के सचिवालय द्वारा जारी एक संसदीय नोट के अनुसार देश में बाढ़ प्रबंधन के विषय पर दो मंत्रालयों द्वारा मौखिक साक्ष्य के संबंध में मामला, विशेष संदर्भ में जल संसाधन प्रबंधन व बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय जल संधियों सहित बैठक में नेपाल, चीन, पाकिस्तान और भूटान के साथ संधि पर चर्चा की जाएगी. यह बैठक मंगलवार को दोपहर 2 बजे से संसद परिसर में आयोजित की जाएगी.
समिति में कुल 21 लोक सभा सदस्य और 10 राज्य सभा सदस्य
इस वर्ष 13 सितंबर को गठित 31 सदस्यीय समिति भारत-चीन के बीच संघर्ष के मद्देनजर अपनी गठन के बाद पहली बार मामले को उठाएगी. इस समिति में कुल 21 लोक सभा सदस्य और 10 राज्य सभा सदस्य शामिल हैं, जो इस बावत चर्चा करेंगे और संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे. इसके बाद भारत सरकार आगे की कार्रवाई पर निर्णय लेगी. बिहार के पश्चिमी चंपारण सांसद संजय जायसवाल इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे.
भारत और पाकिस्तान जल विवाद
भारत और पाकिस्तान 1610 किलोमीटर लंबी सीमा और छह नदियों से पानी साझा करते हैं. भारत और पाकिस्तान सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास से जुड़े हुए हैं. सिंधु नदी प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी सिंचाई प्रणाली का स्रोत है. सिंधु नदी का मुख्य स्रोत चीन (तिब्बत) में स्थित है. 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन ने पाकिस्तान और भारत को सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर सोचने पर मजबूर किया. पाकिस्तानी भूमि को सिंचित करने वाली दो प्रमुख नहरों का स्रोत भारत की क्षेत्रीय सीमा में होने के कारण पाकिस्तान विशेष रूप से चिंतित रहता है. भारत और पाकिस्तान ने 3-4 मई 1948 को दिल्ली में सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर एक बैठक की. इसमें भारत ने सिंधु नदी के प्रवाह को जारी रखने पर सहमति जताई, लेकिन इस बात को बनाए रखा कि पाकिस्तान इस जल के किसी भी हिस्से को अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता. भारत ने कहा कि 1947 के स्टैंडस्टिल समझौते के तहत पाकिस्तान पानी के लिए भुगतान करने पर सहमत हो गया था. इस तरह पाकिस्तान ने भारत के जल अधिकारों को मान्यता दी थी. सिंधु बेसिन बनाने वाली छह नदियों का उद्गम तिब्बत में होता है, जहां से वे हिमालय पर्वतमाला में बहती हैं और कराची के दक्षिण में अरब सागर में समाप्त होती है. 2019 में पुलवामा हमलों के बाद पाकिस्तान जाने वाले पानी को मोड़ने के लिए भारत की योजना को गति दी गई है.
सिंधु जल संधि
इस संधि पर 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में दोनों देशों की साझा छह नदियों के पानी के उपयोग पर दिशा-निर्देश तय किया गया. विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष यूजीन ब्लैक की पहल पर यह संधि हुई थी. संधि में पानी के विभाजन पर सटीक विवरण दिया गया. झेलम, चिनाब और सिंधु (3 पश्चिमी नदियों) को पाकिस्तान को आवंटित किया गया था. भारत को रावी, ब्यास और सतलज (3 पूर्वी नदियों) का नियंत्रण प्राप्त हुआ. संधि ने यह भी कहा कि कुछ विशिष्ट मामलों के अलावा पश्चिमी नदियों पर भारत द्वारा कोई भंडारण और सिंचाई प्रणाली नहीं बनाई जा सकती है.
विरोध की वजह
भारत और पाकिस्तान किशनगंगा (330 मेगावाट) और रटले (850 मेगावाट) के हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट के निर्माण को लेकर असहमत हैं. पावर प्लांट भारत द्वारा बनाया जा रहा है. पावर प्लांट झेलम और चिनाब नदियों पर बनाए जा रहे हैं. संधि के तहत भारत को इन नदियों पर पनबिजली सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति है. मगर पाकिस्तान इसे गलत बता रहा है.
भारत और बांग्लादेश जल विवाद
भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी जल विवाद काफी समय से चल रहा है, लेकिन इसकी असली वजह और इसका इतिहास क्या कहता है यह जानना बेहद जरूरी है. आपको बता दें कि साउथ एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक तीस्ता नदी की करीबन 413 किलोमीटर लंबाई है. तीस्ता नदी भारत में लगभग 295 किलोमीटर के दायरे में बहती है, जिसमें 142 किलोमीटर पश्चिम बंगाल में और 150 किलोमीटर के क्षेत्र में सिक्किम राज्य में बहती है. बांग्लादेश में तीस्ता नदी करीब 120 किलोमीटर के क्षेत्र में बहती है, जबकि तीस्ता नदी का प्रवाह भारत से बांग्लादेश की ओर है. तीस्ता नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्रमें जाकर मिल जाती है.
तीस्ता नदी जल विवाद की क्या वजह है?
तीस्ता नदी सिक्किम के ग्लेशियर से बनने वाले तालाब से निकलकर पश्चिम बंगाल के इलाकों से होते हुए बांग्लादेश पहुंचती है, ऐसे में विवाद की असली वजह है पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति का नहीं होना. दोनों देशों के बीच यह जल विवाद तब और अधिक बढ़ जाता है, जब कम बारिश होती है या ऐसे मौसमों में जब बारिश बिल्कुल नहीं होती है. तीस्ता और उसकी सहायक नदियां हमेशा बारिश पर निर्भर रहती हैं, ऐसे में जब भी बरसात बंद होती है, तो पानी की मात्रा में घट-बढ़ होती रहती है. मानसून के दिनों में अच्छी बारिश होने पर तीस्ता नदी में बाढ़ के हालात भी बन जाते हैं.
बांग्लादेश तीस्ता नदी पर विवाद क्यों खड़ा करता है?
भारत और पश्चिम बंगाल के वह लोग जो तीस्ता नदी पर निर्भर करते हैं और घरेलू और कृषि संबंधी कार्यों के लिए तीस्ता नदी के जल का इस्तेमाल करते हैं, उनकी संख्या करोड़ों में है. पश्चिम बंगाल की करीब 25 फीसदी आबादी तीस्ता नदी के जल का उपभोग करती है. वहीं सिक्किम कि करीब 2 फीसदी आबादी तीस्ता नदी के जल पर निर्भर है. बांग्लादेश की 20 फीसदी से अधिक आबादी तीस्ता नदी पर निर्भर है. बांग्लादेश की आजादी के 12 साल बाद साल 1983 में भारत और बांग्लादेश के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें करार किया गया कि तीस्ता नदी के जल का 36 प्रतिशत हिस्सा बांग्लादेश अपने इस्तेमाल लाएगा, जबकि बाकी 64 फीसदी जल का उपयोग भारत करेगा, लेकिन इस समझौते से बांग्लादेश पिछले 20 सालों से खुश नहीं है और पिछले समझौते पर पुनर्विचार को लेकर अड़ा हुआ है.
भारत और नेपाल जल विवाद
भारत और नेपाल ने फरवरी 1996 में महाकाली नामक एक संधि किया था. पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना का कार्यान्वयन महाकाली संधि का केन्द्र है. पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना के लिए अपेक्षित क्षेत्र जांच वर्ष 2002 में संयुक्त परियोजना कार्यालय (जेपीओ-पीआई) द्वारा पूरा किया गया है. पंचेश्वर परियोजना के परस्पर स्वीकार्य डीपीआर को अभी भी अंतिम रूप दिया जाना है. पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के गठन को पहले ही अधिसूचित कर दिया गया है. जून 2004 में दोनों सरकारों के बीच समझौता पत्रों के आदान-प्रदान के बाद अगस्त 2004 में नेपाल में बराक क्षेत्र में सप्त कोसी उच्च बांध परियोजना के लिए डीपीआर की तैयारी के लिए विस्तृत क्षेत्र जांच करने के लिए एक संयुक्त परियोजना कार्यालय (जेपीओ) की स्थापना की गई थी. डीपीआर प्रगति पर है. जेपीओ– एसकेएसकेआई को कमला बांध की व्यवहार्यता का अध्ययन करने और बागमती बांध परियोजनाओं के प्रारंभिक अध्ययन करने का कार्य भी सौंपा गया है. ये प्रगति पर हैं. करनाली बहु उद्देशीय परियोजना कीडीपीआर काे अंतिम रूप देने का कार्य शीघ्र किया जाएगा.
भारत और चीन जल विवाद
2017 डोकलाम संकट के बाद चीन ने मानसून के आंकड़ों को भारत से साझा नहीं किया था, जोकि पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है. चीन ने ऐसा करके एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) की शर्तों का उल्लंघन किया है. इसके अलावा बीजिंग ने नदी पर कई जल विद्युत बांध बनाए हैं, जिन्हें तिब्बत में यारलुंग जंगबो के नाम से जाना जाता है. इसमें कहा गया है कि वे पानी को स्टोर या डायवर्ट नहीं करते हैं और वे डाउनस्ट्रीम देशों के हित के खिलाफ नहीं होंगे, लेकिन हाल के वर्षों में विशेष रूप से उत्तरपूर्वी भारत में यह आशंका बढ़ रही है कि चीन अचानक भारी मात्रा में पानी छोड़ सकता है. असम के डिब्रूगढ़ के निवासी, जहां नदी का एक सबसे बड़ा खंड है, कहते हैं कि उन्होंने बहुत कम समय में ब्रह्मपुत्र के जल स्तर में तेजी से वृद्धि और गिरावट देखी है. हिमालय में भूस्खलन से नदियों को अवरुद्ध करने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.