गुवाहाटीः राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) ने कहा है कि एनआरसी की सूची में जिनके नाम नहीं आए हैं, उन लोगों ने अब तक करीब 7836 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इससे कई लोग आर्थिक रुप से अपंग हो गए हैं. आर्थिक तंगी की वजह से वे विदेशी न्यायाधिकरण के सामने चुनौती नहीं दे पाएंगे.
'द इकोनामिक्स कास्ट ऑफ ड्राफ्ट एनआरसीः पूअर मेड एक्सट्रमली पूअर' की रिपोर्ट को जारी करते हुए राइट्स एंड रिस्क के निदेशक सुहास चकमा ने कहा कि आरआरएजी के सर्वे के अनुसार सुनवाई में जाने वाले प्रति व्यक्ति ने औसतन 19 हजार 65 रुपये खर्च किए हैं.
निदेशक ने कहा कि यदि एनआरसी ड्राफ्ट से बाहर रखे गए एक व्यक्ति ने औसतन 19 हजार 65 रुपये खर्च किए हैं, तो इस हिसाब से 41 लाख 10 हजार लोगों ने एनआरसी ड्राफ्ट में उपस्थित होने के लिए सुनवाई में 78 अरब 36 करोड़ 3 लाख 71 हजार 985 रुपए खर्च किए हैं.
राइट्स एंड रिस्क ने 17 से 22 जुलाई के बीच सर्वे किया था. इसमें असम के बक्सा, गौलपारा कामरुप जिलें के 62 लोग शामिल थे.
चकमा ने कहा कि वित्त मंत्रालय के अनुसार 2018 के दौरान असम में प्रति व्यक्ति आय 62 हजार 620 रुपए थी. यदि उन्होंने एनआरसी में 19 हजार 65 रुपए खर्च कर दिए. इससे प्रति व्यक्ति आय 48 हजार 555 रुपये या 700 डॉलर हो गई. यह राशि अफ्रीका के बराबर है और गृह युद्ध झेल रहे सोमलिया से ऊपर है.
एनआरसी 41 लाख 10 हजार 169 लोगों के लिए बनाया गया है. जो कि असम के 31 मिलियन जनसंख्या का 13 फीसदी है और इसमें ज्यादातर लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. एनआरसी की सुनवाई के लिए कई लोगों को जमीन गिरवी रखनी पड़ी है, और कई लोगों को अपने पशु, आय के साधनों को बेचना पडा़, जबकि कई लोगों ने सुनवाई के ऋण लिया है.
रिपोर्ट में कहा गया कि एनआरसी में शामिल होने के लिए लोगों ने ज्यादा खर्च किया है. एनआरसी ड्रॉफ्ट से बाहर रखे गए प्रत्येक व्यक्ति ने अधिक पैसे खर्च किए हैं. क्योंकि एनआरसी से बाहर रखे व्यक्ति को ड्राफ्ट में शामिल कराने के लिए परिवार के सदस्यों के साथ-साथ रिश्तेंदारों को भी गवाह के रुप में एनआरसी प्राधिकरण के सामने सुनवाई में शामिल होना पड़ता है.
चकमा ने कहा कि खर्चों में कई गुना वृद्धि इसलिए हुई कि ड्राफ्ट से बाहर व्यक्ति को एनआरसी सेवा केंद्र पर कई बार स्वंय के साथ गवाहों को लेकर उपस्थित होना पड़ा है और व्यक्ति को एनआरसी से प्राप्त नोटिस पर कई बार पिता या दादा के साथ दूसरे जिले में स्थित एनआरसी सेवा केंद्र पर विरासत के साथ जाना पड़ता है.
निदेशक ने कहा कि 31 अगस्त को प्रकाशित होने वाली अंतिम एनआरसी से पहले कई लोगों को आर्थिक रुप से अंपग कर दिया गया. इससे वे विदेशी न्यायाधिकरण के सामने बहिष्कार को चुनौती देने के लिए एक लाख से डेढ़ लाख रुपये के बीच की लागत को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे.
निदेशक ने कहा कि विदेशी न्यायाधिकरण अर्ध-न्यायिक निकाय है और इसमें वकीलों के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है. यदि उनके पास विदेशी न्यायाधिकरण में बचाव करने की क्षमता नहीं है. तो वह उच्च न्यायलय और उच्चतम न्यायलय के सामने चुनौती देने का सवाल ही नहीं उठता है.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों की संख्या में लोग केंद्रों पर अत्यधिक गरीबी, भूख से जूझ रहे हैं और उन्हें नजरबंद किया गया है. उन्हें एनआरसी में शामिल होने को विदेशी न्यायाधिकरण में एनआरसी 1964 में प्रकाशित एनआरसी के तहत अपील करे नहीं तो उनके साथ विदेशियों की तरह व्यवहार किया जाएगा.