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विशाखापट्टनम गैस लीक मामले से भयावह थी 1984 की भोपाल त्रासदी

विशाखापट्टनम में जहरीली गैस के रिसाव की इस घटना ने करीब 36 साल पहले हुई ऐसी ही एक दुर्घटना की यादें ताजा कर दीं. विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में शामिल यह हादसा साल 1984 में 2 दिसंबर की रात को हुआ था. विशाखापट्टनम की ही तरह भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसका असर आज भी वहां के लोगों पर स्पष्ट देखा जा सकता है.

विशाखापट्टनम गैस त्रासदी ने भयावह से थी भोपाल त्रासदी
विशाखापट्टनम गैस त्रासदी ने भयावह से थी भोपाल त्रासदी

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Published : May 7, 2020, 7:12 PM IST

भोपाल : विशाखापट्टनम में जहरीली गैस के रिसाव की इस घटना ने करीब 36 साल पहले हुई ऐसी ही एक दुर्घटना की यादें ताजा कर दीं. विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में शामिल यह हादसा साल 1984 में 2 दिसंबर की रात को हुआ था. विशाखापट्टनम की ही तरह भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसका असर आज भी वहां के लोगों पर स्पष्ट देखा जा सकता है. हालांकि, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में हुआ हादसा विशाखापट्टनम में हुए हादसे से कहीं ज्यादा डराने वाली और घातक थी.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपला का जयप्रकाश नगर, जिसे जेपी नगर भी कहा जाता है, यह वह इलाका है जो 35 साल पहले दो और तीन दिसंबर की दरम्यानी रात मौत के उस भयावह मंजर का गवाह बना था, जिसे याद करते हुए आज भी यहां रहने वालों की रूहें सिहर उठती हैं. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से निकली जहरीली गैस ने न सिर्फ हजारों लोगों की जान ली, बल्कि पर्यावरण को ऐसी क्षति पहुंचाई, जिसकी भरपाई सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं. इस दुर्घटना में 3787 लोगों मौत हो गई थीं.

साल 1984 में हुए उस हादसे से पहले तक यूनियन कार्बाइड से निकलने वाले जहरीले रासायनिक कचरे को परिसर में ही बनाए गए सोलर इवेपोरेशन पॉन्ड में डंप किया जाता था. इस तरह 10 हजार मैट्रिक टन कचरा इन तालाबों में डाल दिया गया, लेकिन ये तालाब तकनीकी रूप से असुरक्षित थे और रसायन वहां से लीक होते थे. उसी कचरे के चलते यूनियन कार्बाइड के आसपास का तीन से चार किलोमीटर क्षेत्र का भूजल प्रदूषित हो गया.

वहीं इस प्रदूषित इलाके में डायक्लोरोबेजिंन, पोलिन्यूक्लियर एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स, मरकरी जैसे 20 रसायन हैं, जो फेफड़े, लीवर और किडनी के लिए बहुत ही घातक होते हैं और कैंसर के कारक रसायन माने जाते हैं. इस संदर्भ में 1989 से अब तक 16 परीक्षण अलग-अलग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जा चुके हैं. सिर्फ एक संस्था को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी के परीक्षण में भूजल प्रदूषण की पुष्टि हुई है, जिसका दायरा समय के साथ बढ़ता जा रहा है.वहीं तत्कालीन सरकार में गैस राहत मंत्री रहे विश्वास सारंग का कहना है कि हमारी सरकार ने लगातार गैस पीड़ितों को राहत पहुंचाने का काम किया है.

कई रिपोर्ट में भूजल प्रदूषण की पुष्टि होने के बाद भी न तो केंद्र सरकार ने और न ही राज्य सरकार ने इवेपोरेशन पौंड में दफ्न उस जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई नीति बनाई है, जिसका नतीजा यह है कि गैस प्रभावित क्षेत्र फिर से एक रासायनिक त्रासदी झेलने के मुहाने पर हैं. यूनियन कार्बाइड के आसपास की 32 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है. इसे सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि साल 2014 तक गैस पीड़ित इसी प्रदूषित भूजल को पीते रहें. वहीं मौजूदा कांग्रेस सरकार का कहना है कि हमारी सरकार लगातार पीड़ितों के लिए काम कर रही है.

हर साल दो और तीन दिसंबर को गैस त्रासदी की बरसी बनाकर मृतकों को याद कर लिया जाता है और कुछ विरोध-प्रदर्शन हो जाते हैं, लेकिन इतनी सरकारें आई और गईं, लेकिन किसी ने भी गैस पीड़ितों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. गैस पीड़ितों को महज आश्वासन ही मिलते रहे हैं. 35 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है. मुआवजे और इलाज के नाम पर भी 25-25 हज़ार रुपये और कुछ दवाईयां गैस पीड़ितों को अब तक मिली है. ऐसे में गैस पीड़ितों को लेकर सरकारें कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

ऐसी ही घटना विशाखापट्टनम में आज तड़के एक केमिकल यूनिट में घटी है. इस घटना में अब तक 11 लोगों की मौत हो गई है. वहीं 800 से अधिक लोगों को अस्पाल में भर्ती कराया गया है. इस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि गैस लीक होने की वजह से सड़कों पर कई लोग बेहोश होकर गिर पड़े. उन्होंने बताया कि अचानक ही सुबह के तीन बजे के बाद लोगों की आंखों में जलन होने लगी. उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी. स्थानीय लोगों ने अपने घर के दरवाजे बंद कर लिए. लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली.

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