नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में पिछले कई साल में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने देश के नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) बनाए जाने की वकालत (batted for) की. अदालत ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 'उद्बोधन' (exhortations) के बावजूद इस वस्तु (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए गोवा एक चमकता हुआ उदाहरण (shining example) है. शीर्ष अदालत ने कहा, गोवा में कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा करते हुए, धर्म की परवाह किए बिना सभी लोगों पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है. जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरूद्ध बोस की पीठ में ये टिप्पणी की गई.
पीठ ने कहा कि पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 उत्तराधिकार और वारिसी (inheritance) अधिकारों को नियंत्रित करेगा. ऐसा देश में कहीं भी रहने वाले गोवा के डोमिसाइल की संपत्तियों के संदर्भ में होगा.
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 44 के तहत आते हैं.' पीठ ने कहा कि यह रोचक है कि संविधान के संस्थापकों ने उम्मीद और अपेक्षा की थी, कि सरकार (state) पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) सुनिश्चित (secure) करेगी, लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है.'
सुप्रीम कोर्ट ने 31 पेज का फैसला लिखा है. फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा 'यद्यपि वर्ष 1956 में हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन इस अदालत के संबोधन (exhortations) के बावजूद देश के सभी नागरिकों पर लागू होने वाली एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.'
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में दो प्रश्नों की व्याख्या की है. पहले सवाल में ये पूछा गया है कि क्या पुर्तगाली नागरिक संहिता (Portuguese Civil Code) को विदेशी कानून कहा जा सकता है? एक अन्य सवाल में पूछा गया कि क्या अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत लागू होंगे?