नई दिल्ली : जनता दल (यूनाइटेड) से 2018 में जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी का आगाज करने वाले प्रख्यात रणनीतिकार प्रशांत किशोर को पार्टी ने आखिरकार बाहर का रास्ता दिखा दिया. एक वक्त था, जब बिहार के मुख्यमंत्री व जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने प्रशांत को बिहार का भविष्य बताया था. लेकिन पिछले कुछ समय से नीतीश और प्रशांत किशोर के बीच नागरिकता कानून को लेकर तनातनी चल रही थी. इस बीच बयानबाजी तेज हुई तो दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं और नतीजा यह हुआ की नीतीश को सख्त फैसला लेना पड़ा.
आइए जानें, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के साथ से लेकर अलग होने तक की कहानी...
नीतीश कुमार के लिए दिया नारा
वर्ष 2015 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव होना था, तब प्रशांत किशोर, लालू यादव और नीतीश कुमार के सम्पर्क में आए. उन्होंने नारा दिया- 'बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है.' फिर नीतीश कुमार की बहार आई और वह सीएम बन गए.
बीजेपी के साथ गठबंधन, नहीं भाया
कुछ दिनों बाद जेडीयू ने आरजेडी से नाता तोड़ लिया. नीतीश ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर नई सरकार चलानी शुरू कर दी. हालांकि, कुछ दिनों के लिए प्रशांत किशोर फ्रेम से बाहर चले गए और इसके बाद अलग राह चुनने लगे. कभी उन्होंने अखिलेश यादव और राहुल गांधी के लिए काम किया तो कभी जगन मोहन रेड्डी और ममता बनर्जी के साथ जुड़े.
पीके की जेडीयू में एंट्री
जेडीयू ने दो साल पहले 2018 में बड़ा फैसला लिया. पीके को जेडीयू में शामिल किया. महागठबंधन को मिली बड़ी चुनावी सफलता के बाद पीके का कद भी बढ़ गया. प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री के सलाहकार और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद मिला. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों का गठन नहीं हुआ है.
एक बयान, जो नीतीश को तीर की तरह चुभा
प्रशांत किशोर ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि आरजेडी से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था, न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी. प्रशांत किशोर का यह बयान नीतीश कुमार को तीर की तरह चुभा. कुछ ही दिनों में नीतीश की आंखों के तारे रहे प्रशांत कांटे की तरह चुभने लगे.