बीमार व्यक्तियों के लिये बेहद जरूरी है कि उन्हे इलाज और राहत समय पर मिले. लेकिन ये हालात तब और खराब हो जाते हैं जब इलाज के दौरान खारब उपकरणों के कारण मरीज की हालत खराब हो जाये. भारत में फिलहाल, उपकरणों की खराबी के कारण अगर मरीज की तबियत बिगड़ती है तो वो मुआवजे का हकदार नही होता है. लेकिन, नीति आयोग द्वारा तैयार ताजा बिल के मुताबिक अगर इलाज के दौरान खराब उपकरणों के कारण मरीज की तबियत बिगड़ती है तो वो एक करोड़ तक के मुआवजे का हकदार हो सकता है. इस मामले में स्वास्थ मंत्रालय का मत, मेडिकल उकरणों को दवा की श्रेणी में रखने का था, मगर नीति आयोग ने इसके लिये अलग तरह के कायदे का सुझाव दिया है. सभी मेडिकल उपकरण जिनमें, विदेशों से आयात किये गये उकरण भी शामिल हैं, मेडिल डिवाइस (सेफ्टी, इफेक्टिवनेस एंड इनोवेशन)बिल, 2019, के दायरे में आयेंगे.
इसके लागू होने के बाद सेंट्रेल ड्रग कंट्रोल संस्थान का दायरा कम हो जायेगा. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय मेडिकल उपकरण बनाने का उद्योग 50,000 करोड़ तक पहुंचने वाला है. इस नये सिस्टम के दायरे में उपकरणों के जांच केंद्र, लैब और दिशानिर्देशों का पालन शामिल होगा.इसके बाद देश में मेडिकल उपकरणों के बाज़ार में बेहतर समन्वय बनने की उम्मीद है. फिलहाल नियमों के पालन में सीडीएससीओ की लचर व्यवस्था से काफी परेशानियां हो रही हैं. वहीं चीन जैसे देश खराब मेडिकल उपकरणों के खिलाफ काफी सख्त कदम उठा रहे हैं. ऐसे ही कदम भारत में उठाने के लिये कड़े कानून और इच्छाशक्ति की जरूरत है.
दो साल पहले इंटरपोल, वर्ल्ड कस्टम ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूसीओ) और 123 देशों द्वारा चलाये गये साझा अभियान में कई सौ करोड़ मूल्य की नकली दवाऐं और मेडिकल उपकरण बरामद किये गये थे. ऐसे सामान की बिक्री करने वाली 3000 वेब साइटों को बंद किया गया था.इस रेड में बरामद हुए हजारों नकली सुईयां, सुनने की मशीनें और अन्य उपकरण पब्लिक हेल्थ सिस्टम के बारे में काफी कुछ कहते हैं.अमेरिका की सबसे बड़ी मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों में से एक जॉनसन एंड जॉनसन पर जिस तरह लगातार जुर्माने लग रहे हैं, उससे ये साफ है कि इस मुसीबत से निपटने के लिये लोगों और सरकार को साथ आना पड़ेगा.पिछले महीने ही कंपनी को अपनी दवा 'रिसपर्डल' के कारण 56,000 करोड़ रुपये का जुर्माना भरना पड़ा.