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नीति आयोग का केंद्र को सुझाव- स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए बढ़ाएं बजट - नीति आयोग का केंद्र को सुझाव

नीति आयोग ने स्वास्थ्य विभाग को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार को स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की मांग का सुझाव दिया है. साथ ही कहा है कि दो-तिहाई स्वास्थ्य बजट को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में बदल दिया जाना चाहिए और जिला अस्पतालों को निजी एजेंसियों के नियंत्रण में लाया जाना चाहिए.

नीति आयोग
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Published : May 24, 2020, 9:17 PM IST

हैदराबाद : भारत में कोरोना संक्रमित मामलों की संख्या एक लाख पहुंचने में कुल 64 दिन लगे, जो अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे देशों की तुलना में काफी बहतर है. लेकिन, डर यह है कि लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद जैसे-जैसे समय बीतेगा, कोविड-19 खतरनाक रूप से फैल सकता है. नीति आयोग का कहना है कि भारत में कोरोना के कुल 70 प्रतिशत मामले 19 जिलों में सामने आए हैं.

हम कोरोना वायरस प्रसार को नियंत्रित करने में अमेरिका, स्पेन, फ्रांस की तुलना में बेहतर काम कर रहे हैं. भारत की मृत्यु दर और रिकवरी दर अच्छे संकेत हैं. कोरोना महामारी के कारण स्वदेशी चिकित्सा ने स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना किया है, जो अपनी समझौतावादी कार्यप्रणाली और पहुंच के लिए जानी जाती है.

केंद्र ने घोषणा की है कि वह ऐसी आपदाओं से निबटने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अधिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने के लिए अधिक निवेश करेगा.

वित्तमंत्री के राहत पैकेज में देशभर के 736 जिलों में 7,096 ब्लॉकों में नैदानिक परीक्षण केंद्रों की स्थापना की जानी है. साथ ही महामारी के उपचार के लिए सभी जिला अस्पतालों में विशेष ब्लॉकों का निर्माण किया जाएगा. हालांकि केंद्र ने आश्वासन दिया कि 'आयुष्मान भारत' हाशिए पर रह रहे समुदायों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करेगा.

कोरोना वायरस संकट व्यापक सुधारों के साथ चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्रों को मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

आयोग ने बताया 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति से पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का सिर्फ 1.6 प्रतिशत के कारण खराब स्थिति में है और 2025 तक इसे बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत करने की आवश्यकता है.

कहावत 'स्वास्थ्य ही धन है' जनता के लिए बड़े पैमाने पर लोगों में प्रचलित है. चूंकि सरकारें इस सच्चाई को बनाए रखने में विफल और आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने में पूरी तरह नाकाम रहीं हैं, लिहाजा करोड़ों लोग हर साल लगातार बढ़ रहे उच्च चिकित्सा खर्चों को वहन नहीं कर पा रहे हैं.

भारत, जो पहले से लाखों डॉक्टरों और नर्सों की कमी का सामना कर रहा है, सेवा की गुणवत्ता और स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता के आधार पर 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है. ग्रामीणों को व्यापक चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने और स्वास्थ्य केंद्रों के समुचित कार्य के लिए 30,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है, जबकि बजट प्रावधान केवल 1,350 करोड़ रुपये है.

15वें वित्त आयोग द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक पैनल ने अगले पांच वर्षों में टियर-2 और टियर-3 शहरों में तीन से पांच हजार अस्पताल में 200 बिस्तरों वाले छोटे निजी अस्पतालों की स्थापना का सुझाव दिया है.

आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि दो-तिहाई स्वास्थ्य बजट को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में बदल दिया जाना चाहिए. दूसरी ओर, चूंकि देश की एक तिहाई आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है, इसलिए नीति अयोग ने अमेरिकी मॉडल की तरह उनके स्वास्थ्य बोझ को कम करने का सुझाव दिया है.

पढ़ें -एम्स के मेडिसिन विभाग के पूर्व एचओडी प्रो. पांडे की कोरोना से मौत

सुझाव है कि ...स्वास्थ्य क्षेत्र को बचाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी सबसे अच्छा विकल्प है और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जिला अस्पतालों को निजी एजेंसियों के नियंत्रण में लाया जाना चाहिए.

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) आम आदमी की स्वास्थ्य सेवा और प्रधानमंत्री की स्वास्थ्य सेवा दोनों को समान रूप से सुनिश्चित करती है.

हेल्थकेयर सिस्टम का केरल मॉडल शेष भारत के लिए एक आदर्श हेल्थकेयर सिस्टम है, जहां अस्पतालों को निम्नतम स्तर तक मजबूत करने और विभिन्न वर्गों के बीच समन्वय होने के कारण कोरोना जैसे खतरे को आसानी से नियंत्रित कर लिया गया. ऐसा मॉडल हमारे सामने एक स्वस्थ भारत का अनावरण कर सकता है!

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