नई दिल्ली : केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों को फाइनल ईयर की परीक्षा को अनिवार्य रूप से कराए जाने के निर्देश को सोच समझ कर लिया गया निर्णय बताया है. गौरतलब है कि यूजीसी के आदेश को सप्रीम कोर्ट में छात्रों, युवा सेना और लॉ के छात्रों द्वारा चुनौती दी गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है. 18 अगस्त से सप्रीम कोर्ट फिर से इस मामले पर सुनवाई शुरू करेगी.
आज देश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर यूजीसी कमिटी के निर्णय का समर्थन किया. इससे यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के बीच भी सरकार अंतिम वर्ष की परीक्षा कराए जाने के निर्णय पर अडिग है. कई राज्यों में परीक्षाएं कराई जा चुकी हैं और सितंबर माह के अंत तक सभी विश्वविद्यालयों को अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश जारी किया गया था.
बहरहाल हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट ने परीक्षा पर स्टे लगाते हुए सप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करने की बात कही है. वहीं दिल्ली और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने भी परीक्षा कराए जाने के निर्णय का विरोध किया है. उनका कहना है कि बिना परीक्षा कराए ही छात्रों को डिग्री दे दी जाए.
शिक्षा मंत्री निशंक का कहना है कि ऐसा करने से छात्रों के भविष्य पर एक प्रश्चिन्ह रह जाएगा. लोग उन्हें कोविड डिग्रीधारी कह कर बुलाएंगे. निशंक का कहना है कि बेशक समय लगेगा और कुछ कठिनाइयां भी सामने आएंगी, लेकिन वह चाहेंगे कि अंतिम वर्ष के छात्र परीक्षा पास कर के ही डिग्री प्राप्त करें. ताकि भविष्य में उन्हें कोई कोविड डिग्रीधारी न कह सके. उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने विश्वविद्यालयों को पूरी छूट दी है कि वो जिस भी माध्यम से चाहें परीक्षा आयोजित कर सकते हैं. अगर उनके पास ऑनलाइन परीक्षा के लिए पर्याप्त साधन हैं तो ऑनलाइन कराएं या अगर ऑफलाइन के लिए पर्याप्त सावधानियों का ध्यान रखते हुए ऑफलाइन परीक्षा आयोजित करें.