दरभंगा (बिहार) :मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने जिस सिंघाड़े की नई किस्म को विकसित किया है, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी ब्रांडिंग की अपार संभावनाएं हैं. पहली बार इस सिंघाड़ा की खेती दरभंगा, मधुबनी और उसके आसपास के इलाकों के कुछ किसानों ने की है और इससे उन्हें काफी लाभ हुआ है. इसकी खूबियों को देखते हुए इसे वैज्ञानिकों ने 'मिरेकल नट' नाम दिया है.
'मिरेकल नट' की कई विशेषताएं
सिंघाड़ा के इस नई किस्म का विकास करने वाले मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. बी.आर जाना ने बताया कि ये सिंघाड़ा पारंपरिक तौर पर उपजाए जाने जाने वाले कांटे वाले सिंघाड़े से अलग है. उन्होंने कहा कि इस सिंघाड़े का साइज बड़ा होता है और सामान्य सिंघाड़े की तुलना में इसकी उपज भी दोगुनी होती है.
इस सिंघाड़े की खेती से न सिर्फ किसानों को दोगुना फायदा हो रहा है, बल्कि इसका इस्तेमाल औषधि बनाने में भी किया जा सकता है. अगर सरकार इस मखाने की मार्केटिंग और इससे औषधीय उत्पाद बनाने की व्यवस्था करे तो इसकी ब्रांडिंग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सकती है- डॉ.बी.आर.जाना, वैज्ञानिक, मखाना अनुसंधान केंद्र