नैरोबी (केन्या): यह रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच इस्तेमाल किये जा चुके एक करोड़ 40 लाख हल्के वाहन दुनिया भर में निर्यात किये गए, जिनमें आधे से अधिक अफ्रीका गए और 80 प्रतिशत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गए. हल्के ड्यूटी वाहनों (एलडीवी) का वैश्विक बेड़ा 2050 तक कम से कम दोगुना हो गया है. इस वृद्धि का 90 प्रतिशत गैर-ओईसीडी देशों में होगा, जो बड़ी संख्या में प्रयुक्त वाहनों का आयात करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पुराने वाहनों को फिर इस्तेमाल करने के लिये न्यूनतम गुणवत्ता मानक निर्धारित किये जाने का आग्रह किया गया है.
प्रयुक्त वाहन और पर्यावरण
प्रयुक्त लाइट ड्यूटी वाहनों का एक वैश्विक अवलोकन: स्केल और विनियमन की अधिकता अपनी तरह की पहली रिपोर्ट के अनुसार सामंजस्यपूर्ण न्यूनतम गुणवत्ता मानकों को अपनाने के साथ ही वर्तमान नीति वैक्यूम को भरने की कार्रवाई के लिए बोलेगा, जो सुनिश्चित करेगा कि प्रयुक्त वाहन आयात करने वाले देशों में क्लीनर, सुरक्षित बेड़े में योगदान करते हैं.
शहरी वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण
तेजी से बढ़ते वैश्विक वाहन बेड़े ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया है. गौरतलब है कि ऊर्जा सम्बन्धी कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 25 फीसदी उत्सर्जन के लिये परिवहन सैक्टर जिम्मेदार है. वाहनों से होने वाला उत्सर्जन बारीक कणीय पदार्थों और नाइट्रोजन ऑक्साइड का एक अहम स्रोत है, जिससे किसी भी स्थान की आबोहवा प्रदूषित होती है.
जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की प्राथमिकता
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि दुनिया में वाहनों के बेड़े को साफ-सुथरा बनाना वैश्विक और स्थानीय वायु गुणवत्ता व जलवायु लक्ष्यों को पाने के लिये एक प्राथमिकता है. विकसित देशों को उन वाहनों का निर्यात रोकना होगा जो कि पर्यावरण और सुरक्षा निरीक्षण में विफल रहते हैं और खुद निर्यातक देशों में सड़कों पर चलाने लायक नहीं समझे जाते, जबकि आयातक देशों को मजबूत गुणवत्ता मानक अपनाने होंगे.
मजबूत गुणवत्ता मानकों का परिचय
वैश्विक स्तर पर वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्या का आकार भी बढ़ रहा है. उन्होंने आगे बताया कि, प्रभावी मानकों और विनियमन की कमी के परिणामस्वरूप पुराने प्रदूषणकारी और असुरक्षित वाहनों का डंपिंग होता है. विकसित देशों को ऐसे वाहनों को निर्यात करना बंद करना चाहिए जो पर्यावरण और सुरक्षा निरीक्षणों को विफल करते हैं. इसके साथ उन वाहनों को वह अपने ही देशों में सड़क पर चलने योग्य नहीं समझते, जबकि आयात करने वाले देशों को मजबूत गुणवत्ता मानकों का परिचय देना चाहिए.
गहन विश्लेषण के आधार पर जारी रिपोर्ट
इस रिपोर्ट में 146 देशों से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. लगभग दो-तिहाई देशों में पुराने वाहनों की आयात सम्बन्धी नीतियां कमजोर या बेहद कमजोर पाई गईं, लेकिन रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि जब देशों ने इस्तेमाल किये हुए वाहनों के आयात के सिलसिले में उत्सर्जन मानक या वाहनों की आयु सीमा सम्बन्धी नीतियां लागू की हैं, तो उससे उच्च-गुणवत्ता वाले पुराने वाहनों तक पहुंच सम्भव हुई है, जिनमें किफायती दामों पर बिजली चालित और हाइब्रिड वाहन शामिल हैं. उदाहरण के लिए मोरक्को केवल पांच साल से कम पुराने वाहनों के आयात की अनुमति देता है, जो यूरो चार यूरोपीय वाहनों के उत्सर्जन मानक को पूरा करते हैं. नतीजतन, यह यूरोप से केवल अपेक्षाकृत उन्नत और सही उपयोग किए गए वाहनों को प्राप्त करता है.
नीदरलैंड द्वारा की गई समीक्षा
रिपोर्ट में पाया गया है कि अफ्रीकी देशों में सबसे बड़ी संख्या में पुराने वाहनों (40 फीसदी) का आयात होता है, जिसके बाद पूर्वी योरोप (24 फीसदी), एशिया-प्रशांत (15 फीसदी), मध्य पूर्व (12 फीसदी) और लातिन अमेरिका (नौ फीसदी) हैं. यूरोपीय देश नीदरलैंड पुराने वाहनों का एक मुख्य निर्यातक देश है, जहां हाल ही में निर्यात पर आधारिक एक समीक्षा में पाया गया कि निर्यात किये जाने वाले अधिकांश वाहनों के पास सड़कों पर फिर इस्तेमाल किये जाने सम्बन्धी सर्टिफिकेट नहीं थे.