नई दिल्ली : नेताजी की विरासत को लेकर लड़ाई शनिवार को उनके 125वें जन्म समारोह पर अपने शबाब पर दिखी. पश्चिम बंगाल की पूरी सियासत नेताजी के नाम पर मार्च, प्रदर्शन और मांग करने में ही सिमट गई. 1965 में लाल बहादुर शास्त्री कोलकाता में नेताजी के जन्मदिवस में शामिल हुए थे. उसके बाद ये पहला मौका था जब कोई प्रधानमंत्री नेताजी के जन्मदिवस पर कोलकाता में कार्यक्रम में शरीक हुआ. कार्यक्रम में 'जय श्री राम के जयकारों' ने पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार को नया मोड़ दे दिया.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 9 किलोमीटर लंबे पैदल मार्च में भी लोगों का लंबा हुजूम नजर आया, वहीं दूसरी तरफ नेताजी के जन समारोह पराक्रम दिवस पर प्रधानमंत्री के पहुंचने पर जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हूटिंग की गई उससे नाराज ममता ने बोलने से ही इनकार कर दिया. वह इस कदर व्यथित हो गईं कि उन्होंने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ही इस सरकारी कार्यक्रम को पार्टी के कार्यक्रम की संज्ञा तक दे डाली.
राजनीतिक विश्लेषक राहुल शर्मा ने ईटीवी भारत से कहा, ऐसा बंगाल में पहली बार नही हुआ है कि ममता बनर्जी ने जय श्रीराम के नारे पर इस तरह की प्रतिक्रिया दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रैली करने जा रही ममता बनर्जी ने रास्ते में जय श्रीराम के नारे लगाने वालों को चेतावनी दी थी. आज भी ममता ने वैसा ही काम किया है.
राहुल शर्मा का कहना है कि 'ममता बनर्जी ने 2019 में भीड़ के मूड को देखकर भांप लिया था कि 2014 जैसे परिणाम नहीं होंगे. लेकिन उन्होंने ऐसी प्रतिक्रिया अपना मुस्लिम वोटबैंक बचाने के लिए दी थी. आज की बात करें तो ममता बनर्जी ने जो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बोलने से इनकार किया उससे उनकी सियासी खीझ झलक रही है. साथ ही ममता ने इमोशनल कार्ड भी खेलने की कोशिश की है.'